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वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 30, सैयद अलाउद्दीन हैदर

सैयद अलाउद्दीन हैदर जिन्हें मौलवी अलाउद्दीन के नाम से जाना जाता है। वह एक भारतीय उपदेशक और हैदराबाद की मक्की मस्जिद में इमाम थे। वह हैदराबाद की रियासत में ब्रिटिश निवास पर हमले की अगुवाई करने के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं।

By: वतन समाचार डेस्क
The freedom fighters who were forgotten

वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 30, सैयद अलाउद्दीन हैदर


स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 30वां नाम सैयद अलाउद्दीन हैदर का है-

 

सैयद अलाउद्दीन हैदर -30

सैयद अलाउद्दीन हैदर जिन्हें मौलवी अलाउद्दीन के नाम से जाना जाता है। वह एक भारतीय उपदेशक और हैदराबाद की मक्की मस्जिद में इमाम थे। वह हैदराबाद की रियासत में ब्रिटिश निवास पर हमले की अगुवाई करने के लिए सबसे ज्यादा जाने जाते हैं।

 

2 जुलाई 1857 में हैदराबाद के निज़ाम की सेना ने ब्रिटिश सरकार के खिलाफ जंग करने के आरोप में कई स्वतंत्रता सेनानियों को गिरफ्तार कर लिया था। इसपर हैदराबाद के लोगों ने प्रदर्शन किया और सभी गिरफ्तार लोगों को तुरंत रिहा करने की मांग की। मौलवी अलाउद्दीन ने 17 जुलाई को जुमे की नमाज़ के बाद लोगों को संबोधित किया और उनसे सिपाहियों का समर्थन करने का आग्रह किया। इसके बाद लोगों ने ब्रिटिश निवास की तरफ जाना शुरू किया। जल्द ही निज़ाम के प्रधानमंत्री ने ब्रिटिश निवास पर हमला न करने के लिए लोगों को मानाने की कोशिश की लेकिन किसी ने ध्यान नहीं दिया। अलाऊदीन ने 500 लोगों की अगुवाई करते हुए ब्रिटिश निवास पर हमला कर दिया, लेकिन अंग्रेज़ों को इसकी खबर पहले ही हो गयी थी। निवास के सभी दरवाज़े बंद कर दिए गए। मेजर ब्रिग्ग्स, कैप्टन होल्म्स और कैप्टन स्कॉट के नेतृत्व में अंग्रेज़ सिपाही भारतीयों के हमले से निवास को बचाने के लिए तैयार हो गए थे। अंग्रेज़ों ने अलाउद्दीन और उनके आदमियों पर गोलियों और तोपों से हमला कर दिया। इसमें कई भारतीय शहीद हो गए। मौलवी अलाउद्दीन को जय गोपाल दस के घर में पनाह लेनी पड़ी।

 

निज़ाम सरकार ने अंग्रेज़ों के पक्ष में अलाउद्दीन के घर व ज़मीन को ज़ब्त करने व गोपाल दास के घर को ढहाने और मौलवी को गिरफ्तार करने का आदेश दिया। इसके बाद अलाउद्दीन तकरीबन डेढ़ साल मँगालपल्ली में पीर मोहम्मद के घर में छुपे रहे। लेकिन आखिरकार उस इलाके में महामारी फैलने के बाद अलाउद्दीन को गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें उम्र कैद की सजा सुना कर 28 जून 1859 में अंडमान की जेल में डाल दिया गया। मौलवी अलाउद्दीन उसी जेल में बीमारी के चलते 1889 में इस दुनिया से अलविदा हो गए।

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