वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 16, डॉ सैयद महमूद
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 16वां नाम डॉ सैयद महमूद का है-
डॉ सैयद महमूद -16
डॉ सैयद महमूद का जन्म 1889 को जिला गाजियाबाद के एक गांव सयैदपुर में हुआ था। भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के दौरान वह एक राजनेता और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता थे।
उन्होंने अपनी शिक्षा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय से प्राप्त की और वहां पर वह छात्र राजनीती में सक्रिय हो गए और विश्वविद्यालय से ही अपने राजनितिक जीवन की शुरुआत की। उन्होंने कांग्रेस के 1905 में आयोजित सेशन में भाग लिया। अलीगढ़ विश्वविद्यालय से उन्हें रानीतिक गतिविधियों के कारण निकाल दिया गया। इसके बाद वह वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए, और फिर बैरिस्टर बनने के लिए लिंकन की सराय गए। उन्होंने जर्मनी से पीएचडी की और फिर वापस भारत आ गए, जहां उन्होंने पटना में सन् 1913 में अपना कानूनी करियर शुरू किया।
सयैद महमूद एक नौजवान मुस्लिम नेता थे जिन्होंने 1916 में कांग्रेस और मुस्लिम लीग के बीच ''लखनऊ समझौता'' स्थापित करने में एक अहम रोल अदा किया। अपने पूर्ण जीवन काल में उन्होंने साम्प्रदायिक सौहार्द पर अधिक बल दिया। उन्होंने महात्मा गांधी से प्रभावित होकर सन 1916 में भारतीय गृह शासन आंदोलन में भी भाग लिया, इसी प्रकार असहयोग आंदोलन, और खिलाफत आंदोलन में भी उन्होंने सक्रिय भूमिका निभाई।
वर्ष 1922 में उन्हें जेल जाना पड़ा। और फिर 1923 में आज़ाद होने के बाद उन्हें नेहरू के साथ कांग्रेस का उप महासचिव चुना गया, जिसके नतीजे में दोनों नेताओं में गहरी दोस्ती हो गयी। इसके अलावा उन्होंने ''मुस्लिम नेशनलिस्ट पार्टी'' की भी बुनियाद रखी। महमूद को असहयोग आंदोलन में शामिल होने के कारण सन 1930 में जेल जाना पड़ा।
ब्रिटिश राज को समाप्त करने के उद्देश्य से उन्होंने सन 1942 में भारत छोड़ो आंदोलन में भी होनी सक्रिय भूमिका निभाई, जिसके नतीजे में महमूद को उनके अन्य साथियों के साथ अहमदनगर किले में कैद कर दिया गया था। वक्त के साथ महमूद का भारतीय राष्ट्रवाद के प्रति समर्थन और ज़्यादा बढ़ता गया, और महमूद एक धर्मनिरपेक्ष मुस्लिम नेता बन गए जिन्होंने दो राष्ट्र थ्योरी का कट्टरता से विरोध किया था। सयैद महमूद की मृत्यु 1971 में हुई।
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