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वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 26, मौलाना मज़हरुल हक

मौलाना मज़हरुल हक का जन्म 22 दिसंबर 1866 को पटना ज़िले के ब्रह्मपुर में हुआ था। वह एक शिक्षाविद्, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में शामिल स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने अपमी शुरुआती शिक्षा पटना महाविद्यालय में प्राप्त की थी उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लखनऊ के एक कॉलेज में चले गए। सन् 1888 में वह गांधी जी से मिले और दोनों के बीच गहरी मित्रता हो गयी। 1888 में ही वह वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए।

By: वतन समाचार डेस्क
Freedom fighter Maulana Mazharul Haque

वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 26, मौलाना मज़हरुल हक

 

स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 26वां नाम मौलाना मज़हरुल हक का है-

 

मौलाना मज़हरुल हक -26

मौलाना मज़हरुल हक का जन्म 22 दिसंबर 1866 को पटना ज़िले के ब्रह्मपुर में हुआ था। वह एक शिक्षाविद्, वकील, सामाजिक कार्यकर्ता और भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में शामिल स्वतंत्रता सेनानी भी थे। उन्होंने अपमी शुरुआती शिक्षा पटना महाविद्यालय में प्राप्त की थी उसके बाद आगे की पढ़ाई के लिए वह लखनऊ के एक कॉलेज में चले गए। सन् 1888 में वह गांधी जी से मिले और दोनों के बीच गहरी मित्रता हो गयी। 1888 में ही वह वकालत की पढ़ाई के लिए इंग्लैंड चले गए।

 

उनका घर 'आशियाना' 18वी सदी में स्वतंत्रता सेनानियों का ठिकाना हुआ करता था। सन् 1891 में वह बैरिस्टर बन कर भारत लोटे तो उन्होंने न्यायपालिका में कार्य करना शुरू कर दिया। उन्होंने 1896 में वकील के तौर पर कार्य किया।

 

सन् 1906 में वह छपरा से पटना आ गए और वहां उन्हें बिहार कांग्रेस कमेटी का उपाध्यक्ष चुना गया। सन 1910-1911 तक वह ब्रिटिश संसद के सदस्य चुने गए। 1911 में मौलाना की अध्यक्षता में बिहार राज्य सम्मलेन आयोजित किया गया उसी समय बिहार को अलग राज्य बनाने की मांग उठी।

 

सन् 1916 में वह कांग्रेस और मुस्लिम लीग के महत्वपूर्ण सदस्य बन चुके थे। उन्होंने 1916 में स्वराज अभियान (HOME RULE MOVEMENT) में भाग लिया, तभी 1917 में वह चम्पारण सत्याग्रह में भी शामिल हुए, जिसके नतीजे में उन्हें तीन महीने जेल की सजा काटनी पड़ी।

 

सन् 1919 में मौलाना मज़हरुल हक ने खिलाफत आंदोलन का पुरज़ोर समर्थन किया। फिर 1920 में वह गांधी जी के असहयोग आंदोलन (non-cooperation movement) से जुड़ गए। मौलाना ने 1921 में पटना में ''सदाकत आश्रम'' की स्थापना की, जिससे महात्मा गांधी काफी प्रभावित और खुश हुए। मौलाना ने उसी आश्रम से 'MOTHERLAND' नामक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया। वह हिन्दू-मुस्लिम एकता और सौहार्द के बड़े समर्थक थे।

 

सन् 1926 में मौलाना ने रजनीति ने इस्तफ़ा दे दिया, और 2 जनवरी 1930 में स्वतंत्रता का यह चिराग इस दुनिया से अलविदा हो गया।

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