वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 32, अल्लामा फज़्ले हक
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 32वां नाम अल्लामा फज़्ले हक का है-
अल्लामा फज़्ले हक -32
अल्लामा फज़्ले हक खैराबादी का जन्म 7 अप्रैल 1797 को सीतापुर के एक गांव खैराबाद में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, धर्मशास्त्री, दार्शनिक और एक कवि भी थे। 1857 में उन्होंने अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ लड़ाई लड़ी और अंग्रेज़ों के खिलाफ लड़ाई में शामिल होने के लिए एक फतवा जारी किया।
जब भारतियों ने अंग्रेज़ों के अधिपत्य के खिलाफ विरोध करना शुरू कर दिया था, तब अल्लामा कई बार आखिरी मुग़ल सम्राट बहादुर शाह ज़फर से मिले। ऐसा 1857 तक चला। अंग्रेज़ों के विरोध में अल्लामा ने उलेमा के समक्ष भाषण दिया और अंग्रेज़ों का विरोध करने के लिए फतवा जारी किया, जिसके कारण पुरे देश में तनाव की स्थिति पैदा हो गयी। इसने ब्रिटिश कंपनी को अपने हितों की रक्षा के लिए दिल्ली के चारों ओर 90,000 सैनिकों का मजबूत बल भेजने के लिए मजबूर कर दिया था। जब 1857 के क्रांतिकारियों ने मज़बूती प्राप्त कर ली थी, तो उस समय अंग्रेज़ों ने अल्लामा को गिरफ्तार कर लिया और उन्हें अंग्रेज़ों के लिए खतरा घोषित करके उम्र कैद की सजा सुनाकर अंडमान की कालापानी जेल में डाल दिया था। और उनकी ज़मीन, जायदाद और घर अदि को भी ज़ब्त कर लिया गया था।
इस दौरान, अल्लामा ने अरबी छंदों के रूप में आंखो देखी रिपोर्टों की एक श्रृंखला का निर्माण किया, इसी के साथ 1857 की लड़ाई और घटनाओं के महत्वपूर्ण अध्ययन पर पहली पुस्तक 'अलसूरत उल हिंदिया' भी वजूद में आयी। अल्लामा ने कालापानी की जेल में रहते हुए ही 1861 में अपनी आखिरी सांसे ली।
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