वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 34, फरीद मिर्ज़ा
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 34वां नाम फरीद मिर्ज़ा का है-
फरीद मिर्ज़ा -34
फरीद मिर्ज़ा का जन्म 7 जुलाई 1918 को हैदराबाद में हुआ था। उन्होंने स्वतंत्रता और आज़ादी की अवधारणा को अधिक महत्त्व दिया। उस्मानिया विश्वविद्यालय से स्नातक की उपाधि प्राप्त करने के बाद उन्होंने निज़ाम राज्य में अधिकारी के पद पर कार्य करना प्रारंभ कर दिया था। फरीद मिर्ज़ा हमेशा भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों को समर्थन देते रहे, फिर जब 1947 में भारत को स्वतंत्रता प्राप्त हुई तब उन्होंने निज़ाम राज्य को भारतीय संघ में प्रवेश करने की मांग उठाई।
14 जुलाई 1948 में उन्होंने निज़ाम राज्य के अपने पद से इस्तीफा देकर हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल करने के लिए अभियान चलाया। उन्होंने राज्य के मुसलमानों से आग्रह किया की वह राष्ट्रीयवादी नज़रिये और हैदराबाद को भारतीय संघ में शामिल करने की मांग करने वालो के उत्पीड़न के खिलाफ आवाज़ उठायें।
फरीद मिर्जा ने अपने दोस्त बाकर अली मिर्जा की सहायता से एक बयान तैयार किया, और इसे हैदराबाद में प्रभावी मुसलमानों से व्यापक समर्थन प्राप्त हुआ। 13 अगस्त 1948 को फरीद मिर्ज़ा ने इस बयान को लोकल उर्दू समाचार पत्र में प्रकाशित कराया जिसका शीर्षक ''सात प्रमुख मुसलमानों की ओर से सातवें निज़ाम को एक खुला पत्र''। इस टिप्पणी से निज़ाम राज्य में हलचल मच गई, साथ ही इसके अधिकारियों में नाराज़गी और गुस्सा भी पैदा हो गया। निज़ाम सरकार ने फरीद मिर्ज़ा को तुरंत उनकी टिप्पिणी वापस लेने का आदेश दिया। लेकिन फरीद मिर्ज़ा और उनके साथी अपने विरोध पर अड़े रहे। बाद में फरीद मिर्ज़ा पुनर्वास समिति के सदस्य बने जिसे कथित पुलिस कार्रवाई के परिणाम में हुए लोगों के नुकसान को कुछ हद तक काम करने के उद्देश्य के लिए गठित किया गया था। फरीद मिर्ज़ा ने 1 अगस्त 1949 में हैदराबाद के डिप्टी कलेक्टर का कार्यभार संभाला और 1961 में अपने इस पद से इस्तीफा दे दिया।
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