वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 36, कर्नल निजामुद्दीन शैख़
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 36वां नाम कर्नल निजामुद्दीन शैख़ का है-
कर्नल निजामुद्दीन शैख़ -36
कर्नल निजामुद्दीन शैख़ का जन्म सन् 1900/1906 को जिला आजमगढ़ के गांव ढकवा में हुआ था। कहा जाता है कि कर्नल 1950 तक बर्मा में रहे। उसके बाद 1969 में वह वापस अपने गांव ढकवा में अपनी नियमित ज़िन्दगी जीने के लिए वापस भारत लोट गए।
सन् 2001 में उन्होंने दावा किया कि वह स्वतंत्रता संग्राम के दौरान आज़ाद हिन्द फ़ौज में शामिल थे, और सरकार से उन्हें स्वतंत्रता सेनानी के रूप में मान्यता देने का आग्रह किया। उनके इस आग्रह के 12 साल बाद सरकार ने सकारात्मक प्रतिक्रिया व्यक्त की। साल 2013 में आजमगढ़ के जिलाधिकारी ने ढकवा में सरकारी बधाई सम्मेलन में निजामुद्दीन शैख़ को स्वतंत्रता सेनानी के तौर पर मान्यता दी, और कहा कि शेख निजामुद्दीन को उचित प्रक्रिया का पालन करते हुए सभी आवश्यक सुविधाएं दी जाएंगी। इसी सम्मलेन के दौरान पूर्वांचल विश्विद्यालय के उप कुलपति ने उन्हें सम्मान उपाधि से भी सम्मानित किया।
आज़ाद हिन्द फ़ौज में कर्नल निजामुद्दीन की भागीदारी का खुलासा इसी सम्मलेन में हुआ था।
इस कार्यकर्म के बाद लोगों को पता चला कि निजामुद्दीन शैख़ 1926 में आज़ाद हिन्द फौज में शामिल हुए थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के दिल्ली चलो आह्वान में उनकी सक्रियता देखते हुए बोस ने उन्हें पहले अपना ड्राइवर नियुक्त किया उसके बाद उन्होंने शैख़ को अपना अंगरक्षक बनाया और फिर बाद में बोस ने उन्हें अपना पर्सनल असिस्टेंट बना लिया था।
कर्नल निजामुद्दीन शैख का मानना था कि जब तक नेताजी ज़िंदा हैं तब तक भारत का विभाजन नहीं हो सकता।
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