मरकज़ निजामुद्दीन के मुद्दे को धार्मिक रंग देना निंदनीय
यह मुद्दा मानवीय सहानुभूति से जुड़ा है, इसे एक आपराधिक या अलगाववादी घटना के रूप में प्रस्तुत करने से हमारी राष्ट्रीय संघर्ष प्रभावित होगी: मौलाना महमूद मदनी
नई दिल्ली - 2/ अप्रैल
जमीअत उलेमा-ए-हिंद के महासचिव मौलाना महमूद मदनी ने मरकज़ निज़ामुद्दीन (दिल्ली) के बारे में नकारात्मक प्रचार और करुणा वायरस जैसी घातक बीमारी से जुड़े मुद्दे को धार्मिक रंग देने पर खेद व्यक्त किया है। आज पूरी दुनिया और विशेष रूप से हमारा देश, इस आपदा से निपट रहा है, ऐसे वक़्त में हमें खुद को अधिक संवेदनशील और जिम्मेदार इंसान के रूप में पेश करना चाहिए, और प्रभावित व्यक्ति चाहे वह किसी जाती या धर्म से जुड़ा हो उसके साथ खड़ा होना चाहिए । लेकिन यह खेद का विषय है कि जब ऐसी स्थितियों के पीड़ित मरकज़ निजामुद्दीन से संबद्धिथ पाए गए, तो उन्हें कुछ मीडिया हाउस और कुछ गैरजिम्मेदार तत्वों ने धार्मिक अतिवाद से जोड़ने और एक विशेष कम्युनिटी पर इलज़ाम धरने की कोशिश शुरू कर दी। हालांकि, वहां से जो बाते आरही हैं, उस की रौशनी में किसी एक पर दोष नहीं दिया जा सकता, पुलिस प्रशासन को भी समान रूप से जिम्मेदार क़रार दिया जाना चाहिए। यह और अधिक स्पष्ट है कि देश में अचानक तालाबंदी की गई, जिससे ऐसी स्थितियां पैदा हुईं कि जहां कहीं भी कोई था वह वहां से निकल नहीं सकता था, निकास के सभी मार्ग बंद थे, ऐसे में वहां से लोगों को निकालने की जिम्मेदारी सरकार और पुलिस प्रसाशन पर थी। लेकिन पुलिस प्रशासन ने इस काम में देरी कर दी और जो काम इसे एक सप्ताह पहले करना था उसने एक सप्ताह बाद किया। ऐसे में ये सवाल पूछा जाना चाहिए कि 28 मार्च की शाम को शुरू होने वाला प्रयास पहले क्यों नहीं किया गया?
मौलाना मदनी ने कहा कि जहां तक मुसलमानों और उसके धार्मिक संस्थानों का सवाल है, तो उन्होंने इस बीमारी में सरकार और स्वास्थ्य विभागों के निर्देशों का पालन किया और अपने बयानों और निर्देशों के माध्यम से लोगों को बार-बार बेदार किया। उनकी अपील पर लोगों ने शुक्रवार की नमाज भी अपने घरों में पढ़ी। देश के सभी इस्लामी संस्थान, चाहे वे किसी भी मसलक के हों, इस लड़ाई में देश के साथ खड़े हैं। वे इसे राष्ट्रीय, व्यक्तिगत और धार्मिक जिम्मेदारी साझते हैं।
मौलाना मदनी ने कहा कि जमीअत उलमा- ए- हिन्द देश के ज़िम्मेदार लोगों और मीडिया से ऐसी स्थिति में अपील करती है कि वे स्थिति की बारीकियों को समझें और मुसलमानों के खिलाफ दुष्ट प्रचार करने वालों के खिलाफ खड़े हों। यह निश् रूप से, मानवता से संबंधित मुद्दा है, जिसमें एक-दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाय एकमत सहानुभूति और सहयोग की आवश्यकता है और यह इस देश की एक महान परंपरा रही है। ऐसे वक़्त में राजनीतिक और धार्मिक घृणा से बड़ा कोई पाप नहीं होगा। उन्होंने कहा कि निजामुद्दीन की घटना के बाद, पूरे देश में लोगों के साथ सहानुभूति की आवश्यकता थी, न कि उन्हें दोषी बना कर पेश करने की, क्योंकि यह इस से आपदा के खिलाफ हमारा राष्ट्रीय संगर्ष प्रभावित होगा।
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