Hindi Urdu TV Channel

NEWS FLASH

वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 8, वायकोम मोहम्मद बशीर

वायकोम मोहम्मद बशीर का जन्म 21 जनवरी 1908 को त्रावणकोर ज़िले के थलीयोला-पराम्बु गांव में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, मानवतावादी और मलयालम साहित्य के लेखक थे। भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने अपनी लेखनी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।

By: वतन समाचार डेस्क
Those freedom fighters who were forgotten - 8, Vaikom Mohammad Bashir

वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 8, वायकोम मोहम्मद बशीर

 

स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में आठवां नाम वायकोम मोहम्मद बशीर का है-

 

वायकोम मोहम्मद बशीर- 8

वायकोम मोहम्मद बशीर का जन्म 21 जनवरी 1908 को त्रावणकोर ज़िले के थलीयोला-पराम्बु गांव में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता सेनानी, मानवतावादी और मलयालम साहित्य के लेखक थे। भारत को अंग्रेज़ों से स्वतंत्र कराने के लिए उन्होंने अपनी लेखनी को हथियार के तौर पर इस्तेमाल किया।

 

अपनी प्राथमिक शिक्षा प्राप्त करने के बाद वह वायकोम के अंग्रेज़ी मीडियम स्कूल में दाखिल हो गए। इसी स्कूल में 1924 में उन्होंने पहली बार महात्मा गांधी को देखा था, वह उस समय गांधी जी से बहुत प्रभावित हुए और स्वदेशी आंदोलन से जुड़ कर खादी पहनना शुरू कर दी। उस समय बशीर ने तय किया कि वह भारत की स्वतंत्रता के लिए लड़ेंगे और उसके लिए उन्होंने पांचवीं कक्षा से स्कूल छोड़ दिया था। सेकुलरिज्म और सर्वधर्म संभाव उनकी पहचान बना। कोच्चि में कोई शक्तिशाली स्वतंत्रता आंदोलन न होने के कारण वह 1930 में मालाबार नमक सत्याग्रह में शामिल होने आ गए।

 

लेकिन इससे पहले की वह सत्याग्रह में शामिल होते उनकी पार्टी को गिरफ्तार कर लिया गया और बशीर को 3 महीने की सजा सुनाई गई, और कन्नूर की जेल में उन्हें कैद कर दिया गया। जेल में विभिन्न क्रांतिकारियों की कहानियों जैसे भगत सिंह, सुखदेव थापर, शिवराम राजगुरु, जिन्हें अंग्रेजी हुकूमत ने मार दिया था, इन लोगों की कहानियों ने बशीर को बहुत प्रभावित किया।

 

इसके बाद गांधी-इरविन समझौते के तहत उन्हें आज़ाद कर दिया गया। आज़ाद होने के बाद उन्होंने उज्जीववन नमक एक क्रांतिकारी समाचार पत्र प्रकाशित किया। जिसे 1931 में ब्रिटिश सरकार ने बैन कर दिया और बशीर के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी कर दिया, गिरफ़्तारी से बचने के लिए वह अंडरग्राउंड हो गए। इसके बाद 1937 में बशीर में अपनी कोशिशें फिर से शुरू कर दी। जिसके बाद 1941 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें खतरनाक व्यक्ति घोषित कर दिया और उन्हें जेल में डाल दिया। उन्होंने तीन महीने जेल में बिताये इस दौरान उन्होंने अपनी पहली पुस्तक पुलिस और सार्वजनिक मामलों और अपने जेल के अनुभव अदि विषयों पर लिखी। इसके बाद बशीर ने विभिन्न विषयों पर अनेकों पुस्तकें लिखीं। अपनी ज़्यादा तर क्रन्तिकारी पुस्तकें बशीर ने जेल में ही लिखी हैं।

 

1882 में भारतीय सरकार ने बशीर को पद्मा श्री से सम्मानित किया। उनकी मृत्यु 5 जुलाई 1994 में बेपोरे में हुई।

ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :

https://www.watansamachar.com/

उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :

http://urdu.watansamachar.com/

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :

https://www.youtube.com/c/WatanSamachar

ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :

https://t.me/watansamachar

आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :

https://twitter.com/WatanSamachar?s=20

फ़ेसबुक :

https://www.facebook.com/watansamachar

यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।

Support Watan Samachar

100 300 500 2100 Donate now

You May Also Like

Notify me when new comments are added.

Poll

Would you like the school to institute a new award, the ADA (Academic Distinction Award), for those who score 90% and above in their annual aggregate ??)

SUBSCRIBE LATEST NEWS VIA EMAIL

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.

Never miss a post

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.