वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 1, अब्बास अली
15 अगस्त 1947 में जब भारत को स्वतंत्रता मिली तब से लगातार भारत वासी स्वतंत्रता संग्राम में अपनी भूमिका निभाने वाले स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान का जश्न मनाते आ रहे हैं लेकिन इस कड़ी में कुछ ऐसे नाम भी हैं जिन्हें भारतीय जनता या सरकारों ने भुला दिया है या उन्हें नज़रअंदाज़ कर दिया गया है।
भुला दिए गए स्वतंत्रता सेनानियों को फिर से याद कराने की कोशिश में वतन समाचार एक सीरीज़ शुरू कर रहा है, जिसमें उन स्वतंत्रता सेनानियों के योगदान, बलिदान और भारत को स्वतंत्रता दिलाने में उनकी भूमिका से पाठकों को अवगत कराने की कोशिश की जाएगी, जिन्हें भारतीय समाज ने भुला दिया है।
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में पहला नाम अब्बास अली का है-
1. अब्बास अली-
अब्बास अली का जन्म जिला बुलंदशहर के खुर्जा, उत्तर प्रदेश में एक मुस्लिम राजपूत परिवार में हुआ था। अब्बास एक राजनेता के साथ-साथ स्वतंत्रता सेनानी भी थे, जिन्होंने सुभाष चंद्र बोस की भारतीय राष्ट्रीय सेना जिसे आज़ाद हिन्द फ़ौज के नाम से भी जाना जाता है, में सेनापति के तौर पर अपनी भूमिका निभाई थी। बाद में अब्बास अली सन 1948 में समाजवादी आंदोलन का एक सदस्य बन गए।
अब्बास अली अपने बचपन से ही भगत सिंह के क्रांतिकारी विचारों से काफी प्रभावित थे। खुर्जा में अपने हाई स्कूल के दिनों में ही अब्बास, भगत सिंह और उनके साथियों द्वारा बनाये गए संगठन नौजवान भारत सभा से जुड़ गए थे। इसके बाद अब्बस अलीगढ़ मुस्लिम विश्विद्यालय में अपनी शिक्षा के दौरान ऑल इंडियन स्टूडेंट्स फेडेरशन से जुड़ गए, जब सुभाष चंद्र बोस से 1945 विद्रोह का आह्वान किया तो अली आज़ाद हिन्द फ़ौज से जुड़ गए लेकिन अंततः वह अंग्रेज़ों द्वारा पकड़े गए, उनका कोर्ट मारशल हुआ और उन्हें गिरफ्तार करके मौत की सजा सुनाई गई। लेकिन जब 1947 में भारत आज़ाद हुआ और देश में भारतीय सरकार सत्ता में आयी तब मौत की सजा होने से पहले ही उन्हें आज़ाद करा लिया गया।
सोशलिस्ट पार्टी के नेताओं जैसे राम मनोहर लोहिया अदि के प्रभाव में अब्बास ने राजनीती में प्रवेश किया। 1966 में उन्हें संयुक्त सोशलिस्ट पार्टी का राज्य महासचिव नियुक्त किया गया। अब्बास ने एक आत्मकथा भी लिखी ''न रहूं किसी का दस्तेनिगार-मेरा सफर नामा'' जिसे 3 जनवरी 2009 में प्रकाशित किया गया।
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