वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 11, अशफाकुल्लाह खान
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 11वां नाम अशफाकुल्लाह खान का है-
अशफाकुल्लाह खान - 11
अशफाकुल्लाह खान का जन्म 22 अक्टूबर 1900, को शाहजहांपुर, उत्तर प्रदेश के एक धनी, जमींदार परिवार में हुआ था। वह एक क्रांतिकारी बुद्धिजीवी और आदर्शवादी नौजवान थे, जिन्होंने देश के लिए अपने प्राण त्याग दिए।
सन 1920 में गांधी जी ने अंग्रेज़ हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन शुरू किया लेकिन चौरी-चोरा की घटना के बाद गांधी जी ने अपना आंदोलन समाप्त कर दिया था। उसी समय अशफाकुल्लाह खान व उनके अन्य नौजवान साथियों ने निराश होकर फैसला किया और सन् 1924 में अपने जैसे स्वतंत्रता सेनानियों का एक संगठन बनाया जिसे हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के नाम से जाना गया। इस संगठन का मकसद आज़ाद भारत के लिए सशस्त्र क्रांति को संगठित करना था। क्रांति के लिए हथियारों को खरीदने के उद्देश्य से हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन के सदस्य शाहजहांपुर में इकठ्ठा हुए, जहां हथियारों के लिए पूंजी जमा करने हेतु उन्होंने ब्रिटिश सरकार की एक ट्रैन लूटने की योजना बनाई, यह ट्रैन 9 अगस्त 1925 को अंग्रेज़ सरकार का पैसा लेकर शाहजहांपुर से लखनऊ जाने वाली थी। खान और उनके क्रांतिकारी साथी हरदोई से ट्रैन में सवार हो गए, जब ट्रैन काकोरी स्टेशन पर रुकी तो यह क्रांतिकारी गार्ड के डब्बे में पैसों के बॉक्स लूटने के लिए घुस गए लेकिन झड़प के दौरान गलती से उनसे गोली चल गयी जोकि एक आम नागरिक को जा लगी, जिस कारण उन्हें अपनी चोरी छोड़ कर भागना पड़ा।
इस हादसे के बाद अशफाक एक लम्बे समय तक अंडरग्राउंड रहे, लेकिन बदकिस्मती से उनके एक दोस्त ने उन्हें धोका दे दिया और अंग्रेज़ पुलिस को उनके ठिकाने की जानकारी देदी। जिसके चलते अशफाक को 17 जुलाई 1926 में गिरफ्तार कर लिया गया और उन्हें फांसी की सजा सुनाई गयी। 19 दिसंबर 1927 को अशफाक और उनके क्रांतिकारी साथी बिस्मिल और रोशन सिंह जोकि अलग अलग जेलों में कैद थे, तीनों को फांसी पर चढ़ा दिया गया।
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