वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 3, मुंशी सैयद मोहम्मद मस्तान
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में तीसरा नाम मुंशी सैयद मोहम्मद मस्तान का है-
मुंशी सैयद मोहम्मद मस्तान -3
मुंशी सैयद मोहम्मद मस्तान बैग का जन्म 1 जुलाई 1913, को आंध्र प्रदेश के शहर गुंटूर के इलाके संगादिगुंटा में हुआ था। वह एक स्वतंत्रता कार्यकर्ता थे, जिन्होंने अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ भारत की स्वतंत्रता के लिए कार्य किया। महात्मा गांधी के एक शिष्य होने के नाते वह फख्र से कहते थे कि ''गांधी मेरे लिए एक सुनहरा शब्द है।'' और अपनी पूरी ज़िन्दगी उन्होंने गांधी के रास्ते पर बिताई। मस्तान बैग ने 1942 में मद्रास विश्विद्यालय से उर्दू में स्नातक की उपाधि प्राप्त की। बाद में वह आंध्र प्रदेश के तेनाली में एक हाई स्कूल में उर्दू के अध्यापक के तौर नियुक्त किये गए। मस्तान बैग अपने अध्यापन के कार्य के साथ साथ भारतीय राष्ट्रीय आंदोलनों में भी सक्रियता से जुड़े रहे।
उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन में पूरी सक्रियता से भाग लिया और भारत छोड़ो आंदोलन में भी सम्मुखता से अपनी भूमिका निभाई। उन्होंने मशहूर क्रांतिकारी अन्नपरागड़ा कामेश राव द्वारा आयोजित गुप्त रानीतिक शिविरों में भी भाग लिया, जिसके चलते उन्हें 21 दिन की पुलिस हिरासत में भी रहना पड़ा था। मस्तान को पुलिस हिरासत में मानसिक और शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया गया था।
मस्तान बैग ने बटवारे का पुरज़ोर विरोध किया था, और जब बटवारे का दिन आया तो उनके लिए सबसे बड़ी चुनौती भारत का दो देशों के बीच बटवारा होते देखना था। सैयद मुश्ताक़ ने अपनी आखिरी सांसे 29 सितंबर 1999 को आंध्र प्रदेश तेनाली में ली।
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