वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 39, फकीर मजनू शाह बुरहान
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में 39वां नाम फकीर मजनू शाह बुरहान का है-
फकीर मजनू शाह बुरहान -39
फकीर मजनू शाह बुरहान वर्तमान के उत्तर प्रदेश के मुस्लिम सूफी थे। उन्होंने फकीर-सन्यासी क्रांति में भी भाग लिया था। कुछ विद्वानों के अनुसार, यह क्रांति, भारतीय स्वतंत्रता की पहली लड़ाई थी। उन्होंने बंगाल में ब्रिटिश सरकार के प्रभाव के विरोध में अपने धार्मिक समूह के साथ स्वतंत्रता की लड़ाई लड़ी थी।
मजनू ने बड़ी संख्या में मुस्लिम सूफी और हिन्दू सन्यासियों को 1764 की बक्सर लड़ाई में अंग्रेज़ों के खिलाफ एक मंच इकठ्ठा किया था, लेकिन अंग्रेज़ों की ईस्ट इंडिया कंपनी यह लड़ाई जीत गयी। बाद में, 1765 में हस्ताक्षरित इलाहाबाद की संधि ने युद्ध को समाप्त कर दिया।
25 फरवरी 1771 में दिनाजपुर में लेफ्टिनेंट फेलथम के नेतृत्व में ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी के सैनिकों के साथ उनकी दूसरी मुठभेड़ हुई, और असफल होने पर वे बोगरा जिले के महास्थानगढ़ में दरगाह में वापस चले गए। इसके बाद अपने अन्य सूफी साथियों के साथ मजनू 1773 की सर्दियों में राजशाही इलाके में फिर से सामने आए और उन्होंने अंग्रेज़ों की चार टुकड़ियों से लड़ाई लड़ी, लेकिन वह इस बार फिर से हार गए।
1786 में लेफ्टिनेंट ब्रेनन की फौज से जिला कालेश्वर में मजनू ने फिर से लड़ाई लड़ी, जिसमें मजनू के बहुत से साथी शहीद हो गए और कुछ साथियों को मेवात भेज दिया गया। इसके बाद 1786 में मजनू ने फिर से लड़ाई लड़ी और हार गए साथ ही ज़ख्मी भी हुए। कहा जाता है की मजनू का देहांत 26 जनवरी 1788 को जिला कानपूर में शाह मदार की दरगाह में हुआ था। मजनू ने कई लड़ाईयां लड़ी लेकिन वह हार गए, लेकिन उनकी हार के बावजूद स्वतंत्रता की उनकी लड़ाई को भुलाया नहीं जा सकता, उनकी हिम्मत के कारण ही अन्य भारतियों में स्वतंत्रता का जोश पैदा हुआ और उन्होंने स्वतंत्रता संग्राम में भाग लिया।
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