वे स्वतंत्रता सेनानी जिन्हें भुला दिया गया- 4, आबिद हुसैन सफरानी
स्वतंत्रता सेनानियों की इस कड़ी में चोधा नाम आबिद हुसैन सफरानी का है-
आबिद हुसैन सफरानी- 4
आबिद हुसैन सफरानी का जन्म 11 जून 1911 को हैदराबाद में हुआ हुआ था। आबिद भारतीय राष्ट्रीय सेना के अधिकारी थे, वह एक लेखक और उर्दू तथा फ़ारसी भाषा के कवी भी थे।
उन्होंने सविनय अवज्ञा आंदोलन से जुड़ने के लिए स्कूल छोड़ दिया था, जोकि साबरमती आश्रम में जाकर समाप्त हुआ। आबिद हुसैन कुछ समय साबरमती आश्रम में रहे जिसके बाद उन्हें महसूस हुआ की भारत को स्वतंत्रता केवल सशस्त्र संघर्ष के द्वारा ही प्राप्त हो सकती है, जिसका नतीजा यह हुआ कि वह क्रांतिकारियों से जुड़ गए। उन्होंने अपने क्रांतिकारी समूह के साथ मिलकर नासिक जेल में रिफाइनरियों को नष्ट करने के प्रयास में भाग लिया, जिसके कारण उन्हें एक साल कैद की सजा सुनाई गयी। गांधी-इरविन समझौते के मुताबिक उन्हें उनकी सजा पूरी होने से पहले ही आज़ाद करा लिया गया था। आबिद तक़रीबन एक दशक तक भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की गतिविधियों में भी शामिल रहे।
बाद में आबिद इंजीनियर बनने के लिए जर्मनी गए, आबिद जिस समय जर्मनी में विद्यार्थी थे वह, वहां सुभाष चंद्र बोस से मिले और बोस के पर्सनल सेक्रेटरी और अनुवादक बनके अपनी सेवा प्रदान की। हसन को आज़ाद हिन्द फ़ौज का मेजर बनाया गया, उसी समय उन्हें साम्प्रदायिक सौहार्द की पहचान के रूप में हिन्दू धर्म के पवित्र रंग सैफरोन से सफरानी का लकब दिया गया। आबिद हसन ने ही सुभाष चंद्र बोस को नेता की उपाधि दी थी और जय हिन्द का नारा देकर भारत वासियों में जोश भरा था।
बटवारे के बाद हसन भारतीय विदेश सेवा में शामिल हो गए, अपने राजनयिक कैरियर के दौरान उन्होंने मिस्र, डेनमार्क सहित कई देशों में भारतीय राजदूत की भूमिका निभाई। इसके बाद 1969 में सेवानिवृत्ति के बाद हसन हैदराबाद लोट आए और वहीं 1984 में अपनी आखिरी सांसे ली।
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