प्रेस वार्ता के मुख्य बिंदु
प्रधानमंत्री लखीमपुर हिंसा पीड़ितों से क्यों नहीं मिले: अश्विनी कुमार
पूर्व कानून मंत्री श्री अश्विनी कुमार ने आज कांग्रेस मुख्यालय में मीडिया को संबोधित किया
श्री अश्वनी कुमार ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज हम एक दर्दनाक वाक्य का जिक्र करने के लिए आप सबसे हम मुखातिब हैं। यह उन 8 बेगुनाहों की निर्मम हत्या से साथ संबंधित है, जिसके बारे में पिछले कई घंटों से देश उत्तेजित है। 8 बेगुनाह भारतवासी, जिनमें 4 किसान थे, 1 पत्रकार था, उनको सत्ता के नशे में चूर देश के गृह राज्य मंत्री के कार के काफिले के नीचे रौंद दिया गया। वायरल वीडियो पर सारी घटना देशवासियों के सामने है। जिस बेदर्दी से तेज रफ्तार से चलने वाली और हादसे के बाद भी ना रुकने वाली गाड़ियों से किसानों को रौंदते देखकर किसी भी सामान्य व्यक्ति के मन में इस भावना का आना स्वभाविक है कि क्या यह सब देखने के लिए ही देश के निर्माताओं ने आजादी के लिए लंबा संघर्ष किया, उसमें इस तरह की जब दुर्घटना होती है, तो क्या लोगों को और नेताओं को अपनी संवेदनाएं प्रकट करने का भी अधिकार नहीं? अपना आक्रोश प्रकट करने का अधिकार भी नहीं? क्या नेताओं को दुख के समय दुखी परिवारों के साथ सहानुभूति प्रकट करने का अधिकार नहीं? ये बुनियादी सवाल हैं।
क्या कसूर था प्रियंका गांधी जी का, जिन्होंने सबसे पहले लखीमपुर खीरी में जाकर, उन किसानों ने जिन्होंने प्रियजन खोए हैं, उनके साथ संवेदना प्रकट करने का फैसला किया? क्या कसूर था उनका? क्या कोई कह सकता है कि प्रियंका गांधी की मौजूदगी से वहां लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति खराब हो जाएगी? क्या कोई नेता अपने प्रांत या अपने देश के लोगों के साथ हुए जुल्म के खिलाफ खड़े होने का अधिकार नहीं रखता और अगर नहीं रखता, तो क्या यह हमारा लोकतंत्र है? यह है सवाल।
प्रधानमंत्री जी एक महोत्सव में आज लखनऊ में हैं। क्या ये अच्छा नहीं होता कि वो जिन लोगों के साथ ये घटना घटी है, उनके जख्मों पर मरहम लगाने के लिए उनके परिजनों तक पहुंचते और उनके साथ अपनी संवेदना का इजहार करते?
क्या उनके जख्मों पर मरहम लगाने के लिए ये जरुरी नहीं था कि कागजी कार्रवाई के अलावा कोई कॉन्क्रीट एक्शन लिया जाता, जिन्होंने ये घटना रची है? मंत्री महोदय के पुत्र ने गाड़ी चलाई ज़िगज़ैग तरीके से, अखबारों में इसका जिक्र है और जब यह घटना घटी, तो वहाँ से भागने के यत्न में एक अखबार वाले ने स्पष्ट तौर से लिखा है कि उन्होंने किसान के ऊपर गोली भी दागी है। अब इससे ज्यादा जो चश्मदीद बात सामने है वायरल पर, इसके बावजूद अब किस इंक्वायरी की जरुरत है? क्यों नहीं उनको हिरासत में लिया गया? जब किसी के जख्मों पर मरहम लगाने होते हैं, तो कुछ करके दिखाना होता है, बातों से पेट नहीं भरता। अन्याय बातों से नहीं हटता, अन्याय कॉन्क्रीट कदम उठाने से उससे हम लड़ाई कर सकते हैं।
तो आज हम इसलिए इकट्ठे हुए हैं, आपको इसलिए आज यहाँ आने की तकलीफ दी कि देश की भावना जिस तरह से आज आहत है, उसका जिक्र हर देशवासी तक पहुंचे। ये कोई दलगत राजनीति का सवाल नहीं है, ये सवाल देश के बुनियादी मूल्यों का है और इन मूल्यों पर जो नेता, जो पार्टियां, जो सरकारें पूरी नहीं उतरती, जनता की अदालत में उनको कभी ना कभी अपनी कोताही का जवाब देना होता है। ये बात जान ले ये सरकार और ये कहा जा रहा है कि साहब, योगी सरकार ने 45 लाख रुपए का हर्जाना दिया है। क्या एक इंसान के जीवन की कीमत 45 लाख रुपए है? इंसान के जीवन की कोई कीमत नहीं, पैसे के तोल में या तराजू में किसी जान को नहीं तोला जाता, ये तो ईश्वर की देन है। उस माता से पूछो जिसने अपना बेटा गंवाया, उस पत्नी से पूछो जिसने अपने पति गंवाया, उस बहन से पूछो जिसने अपना भाई गंवाया। वो बताएगी जान की कीमत।
तो आज हम भरे दिल से अपनी बात आपके माध्यम से देश की जनता के सामने रखना चाहते हैं।
एक प्रश्न पर कि प्रियंका गांधी जी पर मुकदमा दर्ज कर लिया गया है, क्या कहेंगे? अश्वनी कुमार ने कहा कि जख्मों पर मरहम की जगह जख्मों पर नमक छिड़कने वाला काम कर रही है यूपी सरकार और केन्द्र सरकार। जो सहानुभूति प्रकट करने गए उन पर मुकदमा है और जिन्होंने किसानों को रौंदा, कहा जा रहा है कि वो तो वहाँ थे ही नहीं। जो वायरल चल रहा है, वो गलत है? जो हजारों लोगों की गवाही है, जो वहाँ मौजूद थे, वो भी गलत हैं? मगर क्योंकि सरकार के पास सरकार का डंडा है, इसलिए जो डंडा कहता है, वही सही है और जो डंडा नहीं कहता, वो सही नहीं है। तो इस तरह का लोकतंत्र अब चलने वाला नहीं और हम जानते हैं कि सत्ता का दुरुपयोग, जो सबूत होते हैं, उनको मिटाने के लिए किया जाता है, पर ये प्रक्रिया तो उत्तर प्रदेश में बहुत देर से चल रही है, सारा देश उसको पहचानता है और जानता है। मगर सवाल ये है कि देश के लोग आज जागृत हैं या नहीं? मेरा मानना है, कांग्रेस पार्टी का मानना है, कांग्रेस पार्टी के नेतृत्व का मानना है कि देश के लोग जागृत हैं, वो अपनी वेदना, संवेदना को, अपने विचारों को और अपने आक्रोश को समय आने पर प्रकट करेंगे। मगर आज हमारा दायित्व है कि सच को सच प्रदर्शित करें और झूठ का भांडा फोड़ें, ये कांग्रेस पार्टी का दायित्व है और हमारी पार्टी, श्रीमती सोनिया गांधी, श्रीमती प्रियंका गांधी के नेतृत्व में इस दायित्व को निभाने का भरपूर प्रयास करेगी और कर रही है।
एक अन्य प्रश्न पर कि किस तरह की जांच की मांग कांग्रेस पार्टी करती है? अश्वनी कुमार ने कहा कि जांच का अभी ऐलान हुआ है, आने वाले समय में देखना होगा कि किस गति से जांच हो रही है, किस आधार पर जांच हो रही है, उस पर टिप्पणी तो उस वक्त की जाएगी, पर आज के दिन हमारा ये मानना है कि सिर्फ पेपर वर्क हुआ है। जो आहत लोग हैं, जिस तरह का जनआक्रोश इस मुद्दे पर है, उसको दबाने का काम किया जा रहा है, पर ये आक्रोश दबने वाला नहीं है। इतिहास गवाह है इस बात का।
एक अन्य प्रश्न पर कि एक वीडियो को ट्वीट कर प्रियंका गांधी जी ने कार्यवाई करने की मांग की थी, अब भाजपा सांसद वरुण गांधी जी ने भी इस पर कार्यवाई की मांग की है, क्या कहेंगे? अश्वनी कुमार ने कहा कि मैंने जो पढ़ा है और जैसा आपने बताया भाजपा में भी कुछ लोगों ने इस बात पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने कहा है कि ये स्वीकार्य नहीं है, ये सही नहीं लग रहा है, जो हो रहा है। तो इससे बड़ी क्या दलील हो सकती है, इससे बड़ा प्रमाण क्या हो सकता है कि भारतीय जनता पार्टी जैसी पार्टी के भी भीतर से ऐसे स्वर उठ रहे हैं, जो हमारी बात का अनुमोदन कर रहे हैं।
एक अन्य प्रश्न पर कि भाजपा आरोप लगा रही है कि उत्तर प्रदेश में चुनाव हैं, इसलिए पॉलिटिकल टूरिज्म करने के लिए कांग्रेस पार्टी के नेता ऐसा कर रहे हैं? अश्वनी कुमार ने कहा कि मैं पंजाब से आता हूं। मुझे कुछ किसानों के जज्बातों के बारे में मालूम है, कौन सा समझौता किसके साथ हुआ है, किन शर्तों पर हुआ है, किसने ये समझौता किया, कब हुआ? हो जाए, तो बहुत अच्छी बात और वो समझौता तभी होगा जब तीन काले कानून, जो किसानों के हित में नहीं हैं, उनको निरस्त किया जाए पूरी तरह से। ये समझौता तभी होने वाला है और हम तो कितने महीनों से मांग कर रहे हैं कि किसानों पर जोर-जबर ना कीजिए। उनके साथ खड़े होईए, वो आपके ही लोग हैं, देश की आत्मा हैं वो। देश का पालन-पोषण करने वाले किसान हैं। गांधी जी ने जब देश की आजादी के लिए आंदोलन किया था, तो उसमें सबसे पहला नंबर किसान वर्ग का था, उस आंदोलन को आगे बढ़ाने में। क्योंकि कांग्रेस पार्टी का, महात्मा गांधी जी का ये मानना रहा है कि देश की आत्मा देश के गांव में और किसानों में बसती है और किसान के साथ इस तरह का व्यवहार, आपने कानून तो लागू किए, उस पर संघर्ष वो कर रहे हैं, देश उनके साथ खड़ा है। लेकिन आप अपनी कार के पहियों के नीचे प्रदर्शनकर्ताओं को रौंद रहे हो। ऐसा तो कभी अंग्रेजों के वक्त में भी नहीं हुआ। आज मुझे, मैं खुद एक फ्रीडम फाइटर परिवार से संबंध रखता हूं। आज मैं ये सोचने पर मजबूर हो रहा हूं कि क्या इस तरह की आजादी की परिकल्पना की थी देश के निर्माताओं ने, जिन्होंने अपने सर्वस्व का त्याग देश की आजादी के लिए किया। कम से कम इस मुद्दे पर दलगत राजनीति का सवाल नहीं, पर कोई सवाल उठता है, तो आप बोलते हैं पॉलिटिकल टूरिज्म करने आए हो। अगर कोई संवेदना प्रकट करने वहाँ जाता है, तो उसको कहते हैं कि आप टूरिज्म करने आए हो। अब टूरिज्म कौन कहाँ कर रहा है, इसके बारे में देश की जनता सब जानती है।
एक अन्य प्रश्न पर कि छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री, भूपेश बघेल जी को लखीमपुर खीरी जाने से रोका गया है, क्या कहेंगे, अश्वनी कुमार ने कहा कि बघेल साहब को रोका गया है, पंजाब के मुख्यमंत्री को रोका गया, हमारे कई और नेता, अखिलेश को भी रोका गया, कई लोगों को वहाँ रोका गया, तो सवाल ये है कि प्रोटैस्ट को ही बैरीकेड कर दिया। प्रोटैस्ट को ही दबा दिया। लोग वहाँ पहुँच रहे हैं। अब आप क्या समझते हैं कि किसी प्रांत का मुख्यमंत्री जाकर लॉ एंड ऑर्डर की स्थिति पैदा करेगा- नहीं। अगर किसी प्रांत के मुख्यमंत्री को और देश की बड़ी नेता, प्रियंका गांधी को, जो कांग्रेस पार्टी की जनरल सेक्रेटरी हैं, अगर वो ही नहीं पहुंच सकती, तो कैसा लोकतंत्र, कैसी आजादी?
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