आशा है आप स्वस्थ होंगे। मुझे नहीं पता कि यह पत्र आप तक पहुंचेगा या नहीं लेकिन मैं कृषि की दुनिया में एक महान नाम डॉ एमजे खान और पत्रकारिता की दुनिया के रतन प्रिय सौरभ शुक्ला बाबू (एनडीटीवी) से यह संदेश आप तक पहुंचने का अनुरोध कर रहा हूं।
आदरणीय प्रधानमंत्री जी, किसानों ने कल काला दिवस मनाया, तो मैंने सोचा कि मैं आपको यह पत्र लिखूं, क्योंकि सोशल मीडिया के युग में यह किसी न किसी रूप में आप तक जरूर पहुंचेगा, ऐसी मुझे उम्मीद है। प्रिय प्रधानमंत्री जी, एक पत्रकार होने के साथ साथ मैं किसान का एक सपूत भी हूं। इस नाते मैं आप को यह पत्र लिख रहा हूं। अभी तक मैंने किसानों की मांगों को उतनी गंभीरता से नहीं लिया जितना कि भारत के किसान लेते हैं। हालांकि मैंने डॉ. एमजे खान और राजा राम त्रिपाठी सहित दर्जनों किसानों का साक्षात्कार लिया, फिर भी मैं समस्या की बारीकियों को पूरी तरह से समझ नहीं पाया। लेकिन, पिछले कुछ दिनों में, मैं ने जमीन पर काम करने वाले किसानों से संपर्क किया, तो समस्या पूरी तरह से उनकी समस्या समझ आ गयी, जिसके बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा कि किसानों की मांग न सिर्फ पूरी तरह से जायज है, बल्कि इस से भी आगे जा कर सरकार को किसानों के बारे में सोचना चाहिए.
कांग्रेस के पूर्व उपाध्यक्ष राहुल गांधी ने एक ट्वीट कर के चिंता प्रकट की, कि अब डीएपी के 1,200 रुपये के बोरे के लिए 1,900 रुपये देने होंगे। इसी तरह डीजल के दाम आसमान छू रहे हैं। फसलों की सिंचाई के लिए नहरें धीरे-धीरे पूरी तरह समाप्त हो रही हैं, जो हैं भी उन में से अधिकांश में पानी की सप्लाई नहीं है। यदि जल स्तर नीचे चला जाता है, तो डीएम साहब का आदेश आ जाता है कि आप पंपिंग सेट नहीं चला सकते अन्यथा एक्शन होगा, जाहिर है कि खेत और पानी का चोली दामन का साथ है, चाहे वह सब्जी का खेत हो या धान और गेहूं।
यदि किसान के पास आलू अधिक उत्पादन होता है तो उसे 2 रुपये और 5 रुपये प्रति किलो के हिसाब से उसे बेचने के लिए मजबूर होना पड़ता है, क्योंकि उसके पास रखने की कोई व्यवस्था नहीं है और फिर वही आलू 20 से 30 रुपये प्रति किलो के हिसाब से वह खरीद कर खाता है।
प्रधान मंत्री जी, जब चावल 8 रुपये प्रति किलो था, तब मजदूरी रु2 और खाद 65 रुपए थी, लेकिन वही चावल 20 रुपए किलो हुआ तो खाद 1900 पहुंच गई और मजदूरी तीन सौ रुपए हो गई। ऐसी स्थिति में किसान को क्या करना चाहिए? आप ने किसानों की आय दोगुनी करने की बात कही, यदि आप इसे दुगना भी कर देते हैं, जिसके संकेत दिखाई नहीं दे रहे हैं, तो खाद की कीमत दोगुने से भी अधिक होने वाली है। मजदूरी भी उसी दर से बढ़ रही है, डीजल की कीमत भी आसमान छू रही है, तो किसान को क्या मिलेगा? किसान को पहले से ज्यादा नुकसान होने वाला है।
प्रिय प्रधान मंत्री जी, सिद्धार्थ नगर उत्तर प्रदेश का एक जिला है, जहां वर्तमान में सरकारी गेहूं की खरीद 1985 रुपये है। दिलचस्प बात यह है कि बाबू लोग पहले किसान से 125 रुपये से 150 रुपये बोरी लेते हैं, फिर 1985 के रेट के हिसाब से किसान के खाते में पैसे भेजते हैं। अब सोचिए कि आपका तय दाम भी किसानों को नहीं मिल रहा है. इसके पीछे कितना बड़ा माफिया काम कर रहा है।
दिलचस्प बात यह है कि अगर कोई किसान बाबू को नज़राना देने से मना करता है, तो उसके गेहूं में बारह दोष पाए जाते हैं और उसे खारिज कर दिया जाता है, और अगर वह बाबू जी को चढ़ावा चढ़ा दे, तो उस के गेहूं से सभी दोष दूर हो जाते हैं। मजे की बात यह है कि गेहूं को सरकारी गोदाम में ले जाने के लिए पचास झमेले हैं, कागज ऑनलाइन करवाना, फिर उस को स्त्यापित करवाना This That, ऐसे में सभी किसान सरकारी केंद्रों पर जा भी नहीं सकते. अपनी फसल को आने पौने बेचने के लिए मजबूर हैं।
बस एक आखिरी बात मैं आपको बताना चाहता हूं कि एक किसान को 80-70 क्विंटल गेहूं पैदा करने के लिए 20 बीघे की खेती करनी पड़ती है जिसकी लागत 50,000 रुपये है, जो अब खाद के दाम बढ़ने और अन्य कारणों से 60,000 से 65,000 रुपये हो जाएगी। उसके बाद उसके पास जो राशि बचती है वह 75,000 रुपये से कम की है। अब, क्या कोई किसान अपने बच्चों को 75,000 रुपये में पूरे साल खिला सकता है? उनकी शिक्षा का प्रबंधन कैसे करे? शादी विवाह करे? दवा इलाज कराये? वह क्या करे, क्या न करे? इसलिए मेरी आपसे आग्रह है कि किसानों की समस्याओं को लेकर कुछ गंभीर निर्णय लें।
सर! किसान टूटेगा तो देश को बहुत नुकसान होगा। यह देश का पेट भरने वाला किसान है, लेकिन सच तो यह है कि किसान आज मर रहा है और समस्या का समाधान प्रधानमंत्री जी सिर्फ आप के पास है। आप चाहें तो किसानों के लिए कुछ ऐतिहासिक फैसले ले सकते हैं। अगले लेख में सरकार को किसानों के लिए क्या करना चाहिए, इस पर कुछ सुझाव अवश्य ही दूंगा, जो किसानों और देश की तकदीर बदल सकते हैं।
जय भारत - जय संविधान
संपादक वतन समाचार
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