सेंटर फॉर साइंस एंड इन्वाइरनमेंट (सीएसई) की रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली की पर्यावरण और जनहित में बसों का बहुत अहम योगदान है। सुप्रीम कोर्ट द्वारा आदेशित ईपीसीए ने भी दिल्ली सरकार को बसों की संख्या और सेवा में बढ़ोत्तरी करने के निर्देश दिए थे। दिल्ली उच्च न्यायालय ने युद्ध स्तर पर बसों की संख्या बढ़ाने को कहा। लेकिन दिल्ली सरकार पर इस अहम मुद्दे का कोई ख़ास असर नहीं पड़ा।सुप्रीम कोर्ट ने 1998 में कहा था कि दिल्ली को वर्ष 2001 तक 10,000 बसों की आवश्यकता है। दिल्ली हाई कोर्ट ने 2007 में कम से कम 11,000 बसों की ज़रूरत पर बल दिया। मतलब दिल्ली को कम से कम 11 हज़ार बसों की ज़रूरत आज हर हाल में है। लेकिन अफ़सोस कि डीटीसी और क्लस्टर बसों को मिलाकर भी दिल्ली को आज कुल 5482 (3789+1693) बसों से ही गुजारा करना पड़ रहा है। दिल्ली मास्टर प्लान 2021 के अनुसार राजधानी दिल्ली के लिए वर्ष 2020 तक सार्वजनिक और व्यक्तिगत परिवहन में 80:20 के बंटवारे का लक्ष्य रखा गया है। और इस लक्ष्य को तभी प्राप्त किया जा सकेगा जब सार्वजनिक परिवहन की 73% आवश्यकता बसों से पूरी की जाए। साल 2020 तक 15000 बसों की ज़रूरत है। 16 मार्च 2017 को शाम 4 बजे दिल्ली सचिवालय में डीटीसी बोर्ड की बैठक हुई जहाँ कर्मचारियों एवं बसों की संख्या में लगातार आ रही गिरावट रिपोर्ट की गयी। चिंता भी जताई गई कि अगर ऐसा ही चलता रहा तो वर्ष 2025 तक डीटीसी के पास एक भी बस नहीं होगी और 5052 रेगुलर ड्राइवर सहित मात्र 6517 कर्मचारी बचेंगे। अजित झा ने कहा कि मेट्रो और डीटीसी की बदहाली के कारण ही दिल्ली की सड़कों पर भारी जाम की स्थिती बनी रहती है। वायु प्रदूषण का हर साल जानलेवा स्तर तक पहुंच जाना आम बात हो गई है। दिल्लीवासियों के लिए जहाँ आवागमन महंगा और दुर्गम हुआ है, वहीं सड़क दुर्घटनाओं में इज़ाफ़ा हुआ है। स्वराज इंडिया ने मांग किया कि दिल्ली सरकार राजधानी की सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को आम जनता की पहुँच से दूर करने की बजाए व्यापक, मजबूत और सुविधाजनक बनाने के उपाय करे। पार्टी ने दिल्ली सरकार से आग्रह किया है कि किराया बढ़ाने की अपनी इन योजनाओं पर रोक लगाए। मात्र 6 महीने में दो बार मेट्रो किराया बढ़ने के झटके से उबरने की कोशिश कर रही दिल्ली की जनता पर एक और हमला न करे सरकार।
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