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Alt News दिल्ली पुलिस से Mohammad Zubair के मामले में कहां हुयी चूक?

ऑल्ट न्यूज़ के को-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या दिल्ली पुलिस से इस मामले में चूक हुयी है?

By: वतन समाचार डेस्क

 

 

Alt News दिल्ली पुलिस से Mohammad Zubair के मामले में कहां हुयी चूक?

 

ऑल्ट न्यूज़ के को-संस्थापक मोहम्मद ज़ुबैर की गिरफ्तारी के बाद कई तरह के सवाल खड़े हो रहे हैं. सब से बड़ा सवाल यह है कि क्या दिल्ली पुलिस से इस मामले में चूक हुयी है?

रुणेश कुमार बनाम बिहार राज्य मामले में गिरफ्तारी के दिशा-निर्देश स्पष्ट रूप से कहते हैं कि सजा के रूप में 7 साल से कम कारावास वाले अपराधों के लिए गिरफ्तारी आवश्यक नहीं है, जब तक कि जांच के लिए आवश्यक न हो. फैसले में यह भी कहा गया है कि किसी भी गिरफ्तारी से पहले सीआरपीसी की धारा 41 के तहत जांच का नोटिस जारी किया जाना चाहिए, जिस में उन्हें जांच में शामिल होने के लिए कहा जाए.

 

 

 

दिल्ली पुलिस ने कोर्ट से जुबैर के लिए एक दिन की पुलिस रिमांड मांगी थी. अदालत ने सभी तथ्यों पर विचार करने के बाद जुबैर को एक दिन की पुलिस हिरासत में भेज दिया है. जुबैर के वकील ने इस दौरान जमानत देने के लिए भी आवेदन दिया, लेकिन उसे कोर्ट ने खारिज कर दिया. हालांकि, अदालत ने मोहम्मद जुबैर के वकील को कानूनी सहायता करने के लिए पुलिस हिरासत में दिन में एक बार आधे घंटे के लिए मिलने की अनुमति दे दी है.

 

 

जुबैर की गिरफ्तारी के समय यदि इन दिशा-निर्देशों का पालन नहीं किया गया है, तो वो राहत के लिए अदालत का दरवाजा खटखटा सकते हैं. साल 2022 की शुरुआत में एक मामले में दिल्ली पुलिस ने एक व्यक्ति को बिना नोटिस के गिरफ्तार किया था. दिल्ली हाई कोर्ट ने इस मामले में जिम्मेदार जांच अधिकारी को एक दिन का कारावास और 2000 रुपये का जुर्माना लगाया था.

 

 

इसके अलावा गिरफ्तार किए गए युवक को 15000 रुपये मुआवजे के रूप में देने का आदेश दिया था. फैक्ट चेक वेबसाइट के संस्थापक प्रतीक सिन्हा ने दिल्ली पुलिस पर आरोप लगाया है कि जुबैर, उनके परिवार या दोस्तों में किसी को भी एफआईआर की सूचना नहीं दी गई है. सिन्हा ने ये भी कहा है कि पुलिस ने जुबैर को एक अलग प्राथमिकी में जांच में शामिल होने के लिए बुलाया था, लेकिन उन्हें दूसरे मामले में गिरफ्तार कर लिया. 

 

 

इस मामले में आजतक से बात करते हुए एडवोकेट तारा नरूला ने कहा कि कानूनी मुद्दों और प्रक्रिया पर विचार करना होगा. नरूला ने कहा कि आम तौर पर 7 साल से कम की सजा वाले अपराधों से जुड़े मामले में, पुलिस को पहली बार में धारा 41A सीआरपीसी के तहत नोटिस देना चाहिए और यदि आरोपी जांच में शामिल होता है तो उसे विशेष कारण के अलावा गिरफ्तार नहीं किया जा सकता है. यह वर्तमान स्थिति में भी लागू होता है और यदि FIR में दर्ज अपराध 7 साल से कम समय के लिए दंडनीय हैं तो अर्नेश कुमार केस में सर्वोच्च न्यायालय का निर्णय लागू होगा. जुबैर को एफआईआर का नोटिस देना चाहिए था, जिसमें उसे गिरफ्तार किया गया है. जांच के दौरान दूसरे मामले की FIR का नोटिस देकर गिरफ्तारी करना संबंधित कानून की आवश्कताओं को पूरा नहीं करेगा.

 

 

दिल्ली पुलिस ने बताया कि जुबेर को विवादित ट्वीट से जुड़े केस नंबर 194/20 में पूछताछ के लिए बुलाया गया था.  इस मामले में उन्हें गिरफ्तारी से कोर्ट का प्रोटेक्शन मिला हुआ है. लेकिन उन्हें एक दूसरे मामले केस नंबर 172/22 में गिरफ्तार किया गया है. यह केस जून 2022 में दर्ज किया गया है. केस 2018 में किए गए एक ट्वीट से संबंधित है.

 

दिल्ली पुलिस ने बताया कि पुराने मामले में दिल्ली पुलिस स्टेटस रिपोर्ट दाखिल कर चुकी है. इस मामले में जुबैर का ट्वीट आपत्तिजनक नहीं पाया गया. उन्हें दूसरे मामले में गिरफ्तार किया गया है. दिल्ली पुलिस को एक ट्विटर हैंडल की तरफ से अलर्ट मिला था कि मोहम्मद जुबैर ने एक विवादित ट्वीट किया है, जिसे उनके समर्थक आगे बढ़ा रहे हैं. इस ट्वीट से नफरत का माहौल बन रहा है. इस मामले में उनकी जांच की गई, जिसमें जुबैर की भूमिका आपत्तिजनक मिली. वह सवालों से बचते रहे. उन्होंने जांच के लिए जरूरी तकनीकी उपकरण भी पुलिस को मुहैया नहीं कराए, जांच में सहयोग भी नहीं किया. इस मामले में ही पूछताछ के बाद जुबैर को गिरफ्तार कर लिया गया.

 

 

वहीं जुबैर की गिरफ्तारी पर राजनीति भी शुरू हो गई है. कांग्रेस नेता राहुल गांधी, AIMIM चीफ असदुद्दीन ओवैसी, सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव, कांग्रेस सांसद शशि थरूर समेत कई नेताओं ने जुबैर की गिरफ्तारी को लेकर बीजेपी पर निशाना साधा है.

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