Hindi Urdu TV Channel

NEWS FLASH

तेरी हमदर्दी के चन्द अल्फ़ाज़ मरहम हो गए

(आस्था, जज़्बात और बदले की भावना के तहत फ़ैसले न्यायतंत्र के सम्मान को रौंद डालते हैं)

By: Guest Column
  • तेरी हमदर्दी के चन्द अल्फ़ाज़ मरहम हो गए

  • (आस्था, जज़्बात और बदले की भावना के तहत फ़ैसले न्यायतंत्र के सम्मान को रौंद डालते हैं)

 

कलीमुल हफ़ीज़

 

*संविधान को लागू करने और उसकी व्याख्या करने के लिये डिश्जुयरी (न्यायतंत्र) जम्हूरियत (लोकतंत्र) की जान है, जो अपने इख़्तियारात में ख़ुद-मुख़्तार (स्वायत्त) है।* जुडिश्यरी की बुनियादी ज़िम्मेदारी है कि वह हर नागरिक के बुनियादी इन्सानी हक़ों को प्रोटेक्शन दिलाए और संविधान और क़ानून का ग़लत इस्तेमाल रोकने में अपने अधिकारों का इस्तेमाल करे। जुडिश्यरी स्टेट के तमाम इदारों (संस्थाएं) को तय सीमाओं के अन्दर रहकर काम करने का पाबन्द बनाती है। अगर कोई इदारा अपनी संवैधानिक सीमाओं को फलाँगने की कोशिश करे तो जुडिश्यरी उससे पूछगच्छ करने की पाबन्द है। भारत का जुडिश्यरी सिस्टम एक मिसाली सिस्टम रहा है।

 

 

 यहाँ यह दुशवारी तो है कि फ़ैसले के लिये लम्बा इन्तिज़ार करना पड़ता है और कभी-कभी फ़ैसले के इन्तिज़ार में वादी और प्रतिवादी दोनों परलोक सिधार जाते हैं। अब से पहले अदालतें भावनाओं और आस्था से ऊपर थीं, अदालतों में क़ानून और संविधान का सम्मान था, सरकारी दबाव में फ़ैसले टल तो सकते थे मगर संविधान के ख़िलाफ़ नहीं हो सकते थे। मगर पिछले पाँच-छः बरसों में अदालती सिस्टम भी केसरी वायरस से प्रभावित हो रहा है। देश की सुप्रीम कोर्ट से एक के बाद एक कई फ़ैसले ऐसे आए हैं जहाँ नागरिकों के बुनियादी हक़ मारे गए हैं। अब अदालतें भी आस्था और भावनाओं को सामने रखकर फ़ैसले सुनाने लगी हैं *अगर यही रुझान क़ायम रहा तो अदालती सिस्टम से भरोसा उठ जाएगा और जम्हूरियत की मौत हो जाएगी।

 

 

अदालतों का सम्मान उनके फ़ैसलों पर डिपेंड करता है। *पूरा देश प्रशान्त भूषण जी की इस बात से सहमत है कि सुप्रीम कोर्ट के पिछले चार चीफ़ जस्टिस के दौर में अदालती फ़ैसलों के ज़रिए नागरिकों के इन्सानी और बुनियादी हक़ रौंदे गए हैं जिसकी वजह से सुप्रीम कोर्ट के सम्मान को चोट पहुँची है।* इसी तरह बाबरी मस्जिद केस का फ़ैसला पूरी तरह आस्था पर दिया गया। तीन तलाक़ पर फ़ैसला हुकूमत की ख़ुशी के लिये दिया गया। कश्मीर पर कोर्ट ने हालाँकि केन्द्र सरकार को हालात को नॉर्मल करने का हुक्म दिया है लेकिन विशेष अधिकार के क़त्ल पर सुप्रीम कोर्ट ख़ामोश रही। पूरे देश में CAA और NRC पर प्रोटेस्ट होते रहे मगर कोर्ट के कान बन्द रहे।

 

दिल्ली चुनाव में एक पक्ष के ख़िलाफ़ नेता ज़हर उगलते रहे लेकिन किसी जज ने नोटिस नहीं लिया। दिल्ली दंगों में ख़ुद क़त्ल होने वालों पर मुक़द्दिमे क़ायम किये गए और अदालत तमाशा देखती रही। हक़ और इन्साफ़ की बात कहने वाले दिल्ली हाई कोर्ट के जज मुरलीधर का रातों-रात ट्रांस्फ़र कर दिया गया और सुप्रीम कोर्ट ने कोई नोटिस नहीं लिया।

 

 

आम तौर पर मुसलमानों के ताल्लुक़ से अदालतों के फ़ैसले बहस का मुद्दा रहे हैं इसके बावजूद मुसलमान अदालतों पर भरोसा रखे हुए हैं। शायद इसी भरोसे का नतीजा है कि *अगस्त में मुम्बई और इलाहबाद की हाई कोर्ट्स के फ़ैसलों ने ज़ख़्मों पर मरहम का काम किया है और उम्मीद के सूरज को डूबने से बचाया है।* इनमें एक फ़ैसला तब्लीग़ी जमाअत और दूसरा फ़ैसला डॉक्टर कफ़ील ख़ान के बारे में है।

 

 

हम जानते हैं कि तब्लीग़ी जमाअत का वाक़िआ अप्रेल में हुआ था। मरकज़ निज़ामुद्दीन में ठहरे हुए देश-विदेश के तब्लीग़ी कारकुनों को कोरोना बम बताया गया। तब्लीग़ी सरगर्मियों को कोरोना जिहाद कहा गया। इनके लिये ठहरने के बजाए *छिपे होने* का शब्द इस्तेमाल किया गया। सरकार ने तब्लीग़ी जमाअत पर FIR की बात कहकर आग में घी का काम किया। प्रिंट मीडिया में तीन हज़ार के आस-पास स्टोरियाँ छपीं। दस लाख लोगों ने सोशल मीडिया पर इस तरह की ख़बरें पोस्ट या शेयर कीं। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया मुस्तक़िल एक महीने तक तब्लीग़ी जमाअत की आड़ में इस्लाम और मुसलमानों को बुरा भला कहता रहा। जिसके नतीजे में हिन्दुओं के मोहल्ले में मुसलमानों का रहना दूभर हो गया। ग़ैर-मुस्लिमों ने उन्हें काम देने से इनकार कर दिया। फल और सब्ज़ी बेचने वालों के आधार कार्ड देखे जाने लगे। कितनी ही जगहों पर मुसलमान हिन्दुओं के ग़ुस्से का निशाना बने और कई लोगों की जान चली गई।

 

 

एक पूरे तबक़े को रुस्वा किया गया। एक दीनी जमाअत को बदनाम किया गया। हज़ारों लोगों को जेल में डाला गया। संगीन धाराएँ लगाई गईं। उसके बाद क़ानूनी कार्रवाई के नतीजे में तब्लीग़ी जमाअत के विदेशी कारकुनों की रिहाई और वतन-वापसी से मुताल्लिक़ सबसे पहला हुक्म दिल्ली हाई कोर्ट ने दिया। *20 अगस्त को मुम्बई हाई कोर्ट ने तब्लीग़ी जमाअत पर बड़ा फ़ैसला दिया। जिसमें उसने साफ़ तौर पर कहा कि हुकूमतों ने अपनी नाकामियों को छिपाने के लिये तब्लीग़ी जमाअत को बलि का बकरा बनाया, साथ ही यह भी कहा कि अब से पहले भी सरकारें ऐसा ही करती रही हैं। जज साहिबान ने प्रिंट मीडिया और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया को भी सख़्त डांट लगायी।

 

 

डॉक्टर कफ़ील ख़ान पर तीन साल पहले गोरखपुर के मेडिकल कॉलेज में बच्चों की मौतों के सिलसिले में भी क़ानूनी कार्रवाई की गई थी, जिसमें वो अदालत और जाँच कमेटी के ज़रिए बरी कर दिये गए थे। उस समय भी उनके ख़िलाफ़ बदले की भावना के तहत कार्रवाई हुई थी। उसके बाद अलीगढ़ मुस्लिम यूनिवर्सिटी में की गई तक़रीर को लेकर उन पर संगीन धाराएँ लगा कर मुक़द्दिमे क़ायम किये गए, उन्हें गिरफ़्तार किया गया, उन पर NSA लगाया गया और तकलीफ़ें दी गईं। बहरहाल एक बार फिर डॉक्टर कफ़ील ख़ान के हक़ में फ़ैसला हुआ और वे बरी किये गए।

 

 

 

इन दोनों फ़ैसलों का स्वागत किया जाना चाहिये, लेकिन इस मौक़े पर *सवाल यह है कि क्या ये फ़ैसले जिसके नतीजे में तब्लीग़ी जमाअत या डॉक्टर कफ़ील ख़ान को क्लीन चिट दी गई है वाक़ई इन्साफ़ पर आधारित हैं।* इन्साफ़ का तक़ाज़ा तो यह था कि *सम्बन्धित सरकारें प्रभावित लोगों से माफ़ी माँगतीं। सरकारी कारिन्दों से लेकर गली के शरारती तत्वों तक के ख़िलाफ़ मुक़द्दिमात क़ायम किये जाते जिन्होंने तब्लीग़ी जमाअत के हादिसे में मुसलमानों पर अपने हाथ साफ़ किये थे। प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया के पत्रकारों से लेकर टीवी डिबेट में शरीक उन बुद्धिजीवियों को जेल की सलाख़ों के पीछे धकेला जाता जो इस्लाम और मुसलमानों को गालियाँ दे रहे थे। जब डॉक्टर कफ़ील ख़ान की गिरफ़्तारी ग़ैर क़ानूनी थी, उन पर NSA लगाया जाना ग़लत था, तो इन्साफ़ का तक़ाज़ा था कि *उनको गिरफ़्तार करने वालों और NSA लगाने वालों के ख़िलाफ़ क़ानूनी कार्रवाई की जाती।

 

 

 

*मेरी क़ानूनी एक्सपर्ट्स से गुज़ारिश है कि जवाबदेही के क़ानून को प्रभावी बनाया जाए।* समाजी, मिल्ली और मज़हबी तंज़ीमों की ज़िम्मेदारी है कि वो एक-दूसरे की हिमायत और मदद को आगे आएँ, लम्बी क़ानूनी कार्रवाई से मज़लूम बरी तो कर दिये जाते हैं लेकिन इज़्ज़त, साख और गरिमा के साथ-साथ मज़लूम को जो माली नुक़सान होता है उसकी भरपाई नहीं हो पाती, मज़लूम की उम्र वापस नहीं आती, उसकी ग़ैर-मौजूदगी में उसके बच्चों ने जो दुःख सहन किये हैं उनकी भरपाई नहीं हो पाती। इसका एक ही तरीक़ा है कि *रिहाई के बाद सम्बन्धित अधिकारियों और ज़िम्मेदारों पर सज़ा और मुआवज़े हासिल करने के लिए मुक़द्दिमे क़ायम किये जाएँ और गुनाहगारों को सज़ा और मज़लूम को मुआवज़ा मिलने तक मुक़द्दिमों की पैरवी की जाए।

 

 

इस मौक़े पर तब्लीग़ी भाइयों से गुज़ारिश है कि वे फ़ैसले पर सजदा-ए-शुक्र ज़रूर अदा करें, मगर ज़्यादा ख़ुश न हों क्योंकि बातिल अब आपकी गर्दन तक पहुँच गया है। आप भले ही आसमान से ऊपर और ज़मीन से नीचे की बात करें, आपको भले ही दुनिया और उसके इक़्तिदार से कोई मतलब न हो, लेकिन बातिल को आपके सजदे भी गवारा नहीं। इसलिये ज़मीन के मसलों पर बात कीजिये, उनका हल पेश कीजिये। अपनी नस्लों को इस क़ाबिल बनाइये कि कम से कम अपना डिफ़ेन्स कर सकें।

 

अद्ल और इन्साफ़ तो बस में नहीं मुन्सिफ़ तेरे।

तेरी हमदर्दी के चन्द अल्फ़ाज़ मरहम हो गए

 

कलीमुल हफ़ीज़, नई दिल्ली

 

-डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है. लेखक अफ्फान नोमानी, रिसर्च स्कॉलर स्तंभकार व लेक्चरर है .

ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :

https://www.watansamachar.com/

उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :

http://urdu.watansamachar.com/

हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :

https://www.youtube.com/c/WatanSamachar

ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :

https://t.me/watansamachar

आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :

https://twitter.com/WatanSamachar?s=20

फ़ेसबुक :

https://www.facebook.com/watansamachar

यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।

Support Watan Samachar

100 300 500 2100 Donate now

You May Also Like

Notify me when new comments are added.

Poll

Would you like the school to institute a new award, the ADA (Academic Distinction Award), for those who score 90% and above in their annual aggregate ??)

SUBSCRIBE LATEST NEWS VIA EMAIL

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.

Never miss a post

Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.