CEC: सुप्रीम सख्ती के बीच केंद्र ने कहा लक्ष्मण रेखा का ख्याल ज़रूरी
सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को केंद्र से पूछा कि क्या अरुण गोयल को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त करने की फाइल 'जल्दबाजी' में मंजूर की गई थी। शीर्ष अदालत ने कहा कि 15 मई को रिक्ति हुई और अरुण गोयल की फाइल को 'बिजली की गति' से मंजूरी दे दी गई। केंद्र ने नियुक्ति की मूल फाइल गुरुवार को SC की बेंच के समक्ष रखी। अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने प्रक्रिया की व्याख्या की और शीर्ष अदालत से मामले को पूरी तरह से देखने का अनुरोध करते हुए पीठ से 'लक्षण रेखा वाली बात कही थी।
"यह किस प्रकार का मूल्यांकन है? हम ईसी अरुण गोयल की साख की योग्यता पर नहीं बल्कि उनकी नियुक्ति की प्रक्रिया पर सवाल उठा रहे हैं, ”सुप्रीम कोर्ट ने कहा। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ लगातार तीसरे दिन अरुण गोयल की नियुक्ति पर मामले की सुनवाई कर रही थी. बुधवार को केंद्र की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि यह गलत धारणा है कि चुनाव आयुक्तों और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए पैनल में न्यायपालिका के किसी व्यक्ति की उपस्थिति मात्र से पारदर्शिता और स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी।
चुनाव आयुक्त अरुण गोयल की नियुक्ति शीर्ष अदालत द्वारा जांच के दायरे में आई थी, जिसमें कहा गया था कि वह जानना चाहती है कि क्या नियुक्ति में कोई 'हंकी-पैंकी' थी और केंद्र से मूल फाइलों की मांग की। पीठ ने बुधवार को कहा कि मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए परामर्श प्रक्रिया में भारत के प्रधान न्यायाधीश को शामिल करने से चुनाव आयोग की स्वतंत्रता सुनिश्चित होगी।
अदालत चुनाव आयुक्त और मुख्य चुनाव आयुक्त की नियुक्ति के लिए कॉलेजियम जैसी प्रणाली की मांग करने वाली याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी। शीर्ष अदालत का विचार था कि केंद्र में कोई भी सत्ताधारी दल "खुद को सत्ता में बनाए रखना चाहता है" और मौजूदा व्यवस्था के तहत पद पर 'यस मैन' नियुक्त कर सकता है। केंद्र ने तर्क दिया कि 1991 के अधिनियम ने चुनाव आयोग अपने सदस्यों और वेतन व कार्यकाल के मामले में स्वतंत्र है और कोई "ट्रिगर पॉइंट" नहीं है जिस में अदालत के हस्तक्षेप की ज़रुरत होती हो।
अरुण गोयल को 19 नवंबर को चुनाव आयुक्त के रूप में नियुक्त किया गया था और उन्होंने 21 नवंबर को कार्यभार संभाला था। दरअसल सुप्रीम कोर्ट में बीते तीन दिनों से चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति में सुधार और सरकार का दखल खत्म करने की मांग वाली याचिकाओं पर सुनवाई हुई है। मंगलवार को अदालत ने चुनाव आयुक्तों की नियुक्ति पर ही सवाल उठा दिया था। जस्टिस केएम जोसेफ की अध्यक्षता वाली शीर्ष अदालत की बेंच ने कहा था कि चुनाव आयोग कैसे PM के खिलाफ ऐक्शन ले सकता है, जिसकी नियुक्ति ही सरकार ने की हो। यही नहीं चुनाव आयुक्तों के चयन में चीफ जस्टिस की सदस्यता वाली कमेटी के भी गठन का सुझाव दिया था।
इस पर केंद्र सरकार ने आपत्ति जताते हुए शीर्ष अदालत को ही उसकी लक्ष्मण रेखा याद दिलाई थी।
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