एनजीओ के संबंध में संसद के हालिया सत्र से फंड पर एफसीआरए क्लॉज में मोदी सरकार के जरिए लाए गए संशोधन को 29 सितंबर को राष्ट्रपति के सिग्नेचर के साथ कानून की शकल मिल गयी है। जिसके बाद एनजी से जुड़े कई संगठन इस पर सवाल खड़े कर रहे हैं। NGO सेक्टर से पिछले 15 वर्षों से जुड़ी मानसी शर्मा ने वतन समाचार से विशेष बातचीत में बताया कि मौजूदा एफसीआरए में लाया गया बदलाव कई सारे सवाल खड़े कर रहा है। उन्होंने कहा कि 29 सितंबर को कानून तो बन गया है, लेकिन अभी रूल आने बाकी हैं, जिसके बाद ही आगे का फैसला किया जाएगा कि इस संबंध में किस तरह से आगे क्या करना है।
मानशी ने कहा कि नए कानून में कहा गया है कि अगर आपका एफसीआरए FCRA है तो आपका बैंक अकाउंट दिल्ली के स्टेट बैंक ऑफ इंडिया में होना चाहिए। उन्होंने कहा कि यह स्पष्ट नहीं है कि दिल्ली के किस स्टेट बैंक में या किस ब्रांच में होगा। उन्होंने कहा कि एक आदमी अगर बिहार में काम करता है तो पहले वह वहीं के किसी बैंक में अपना अकाउंट खुलवा सकता था। सारे अकाउंट आरबीआई से रेगुलेट होते हैं। इसलिए किसी तरह की कोई कठिनाई नहीं थी लेकिन अब दिल्ली अकाउंट खुलवाने की शर्तें बहुत सारे सवाल खड़े कर रही है।
उन्होंने कहा कि इस नए कानून से अब सवाल यह पैदा होता है कि क्या एनजीओ से जुड़ा एक आदमी बिहार से दिल्ली या देश के अन्य राज्यों से दिल्ली का सफर करेगा और एक आदमी सिर्फ इसी काम में लगा रहेगा। उन्होंने आगे कहा कि मान लीजिए एफसीआरए के माध्यम से ₹500000 विदेश से किसी संस्था को आता है तो उसमें 50% एडमिनिस्ट्रेशन यानी सैलरी ऑफिस का किराया चाय पानी और दूसरी चीजों में खर्च करने की अनुमति थी और 50% प्रोग्राम पर खर्च करना होता था, लेकिन अब सरकार ने प्रोग्राम के लिए 80 फीसद की शर्त लगा दी है, जबकि 20 फ़ीसदी आप फंक्शनिंग/एडमिनिस्ट्रेशन पर खर्च कर सकते हैं।
उन्होंने कहा कि इससे भी एनजीओस को काफी मुश्किल होगी क्योंकि 20 % चाय पानी रेंट में ही खर्च हो जाता है फिर आगे लोगों को सैलरी देना या और बहुत सारी चीजें जो होती हैं वह कैसे की जा सकें गी। मानशी ने आगे कहा कि नए संसोधन में यह शर्त रख दी गयी है कि आप किसी पब्लिक सेक्टर के आदमी को एनजीओ से ₹1 नहीं ले दे सकते या वह ले नहीं सकता है। उन्होंने कहा कि अभी पब्लिक सेक्टर के आदमी की परिभाषा नहीं की गई है लेकिन अगर इसमें प्रोफेसर या अकैडमिशियन या इन जैसे लोगों को शामिल किया जाएगा तो रिसर्च का काम कैसे होगा? रिसर्च के लिए आगे कौन आएगा आगे।
उन्होंने कहा कि यह एक बहुत ही कठिन प्रश्न है, जिसका भी उत्तर आना बाकी है। उन्होंने कहा कि सरकार को एनजीओ के बारे में इतना संदेश क्यों है? जबकि वह क्वार्टरली और एनुअली अपना रिटर्न फाइल करते हैं। इनकम टैक्स भरते हैं। आरबीआई के सारे रूल रेगुलेशन से जुड़े हुए हैं। उसके बावजूद सरकार की नीति और नीयत समझ से बाहर है। उन्होंने कहा कि अभी हम इंतजार कर रहे हैं कि क्या रोल आगे आते हैं उसके बाद आगे का फैसला क्या जाएगा।
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