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जीडीपी पर कांग्रेस ने सरकार को ऐसे घेरा

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि पहली तिमाही में GDP –23.9 प्रतिशत संकुचित हुआ है, यह अत्यंत ही निराशाजनक है, आजादी के बाद यह सबसे बुरा आर्थिक आंकड़ा है। इसका मतलब है कि 30-6-2019 से सकल घरेलू उत्पादन का लगभग एक चौथाई हिस्सा पिछले 12 महीनों में मिटा दिया गया है। चिंता की बात तो यह है की GDP का यह आंकड़ा समुचित डाटा आने पर और भी बुरा हो सकता है।

By: Press Release
फाइल फोटो
  • जीडीपी पर कांग्रेस ने सरकार को ऐसे घेरा

 

सुप्रिया श्रीनेत ने कहा कि पहली तिमाही में GDP –23.9 प्रतिशत संकुचित हुआ है, यह अत्यंत ही निराशाजनक है, आजादी के बाद यह सबसे बुरा आर्थिक आंकड़ा है। इसका मतलब है कि 30-6-2019 से सकल घरेलू उत्पादन का लगभग एक चौथाई हिस्सा पिछले 12 महीनों में मिटा दिया गया है। चिंता की बात तो यह है की GDP का यह आंकड़ा समुचित डाटा आने पर और भी बुरा हो सकता है।

 

GDP एक आंकड़ा मात्र नहीं है वह किसी भी अर्थव्यवस्था के आर्थिक अवसरों, समृद्धि और नौकरियों का संकेत होता है और इसीलिए आज का आंकड़ा एक गहन चिंता का विषय है।यह दर्शाता है कि लोगों ने अपने रोज़गार के साधन खोए हैं, आनेवाले वक्त में यह स्थिति संभालने में दिक्कत होगी और एक अच्छी खासी संख्या इस देश में वापस गरीबी की सीमा रेखा के नीचे चली गई है।

 

GDP का आधा हिस्सा लगभग मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड होटल और ट्रांसपोर्ट है, जिसमें जबर्दस्त गिरावट हुई है। GDP का आधा हिस्सा लगभग मैन्युफैक्चरिंग, कंस्ट्रक्शन, ट्रेड होटल और ट्रांसपोर्ट है  जिसमें जबर्दस्त गिरावट हुई है। मैन्युफैक्चरिंग -39.3% , कंस्ट्रक्शन -50% ट्रेड होटल और ट्रांसपोर्ट  -47% यह विडंबना है कि जिस देश की आर्थिक वृद्धि थोड़े ही समय पहले  दुनिया में सबसे ज्यादा थी, आज उसी देश में आर्थिक संकट सबसे गहरा है और इसका सीधा-सीधा उत्तरदायित्व सरकार की विफलताओं पर है। कोरोना ने बेशक मुश्किलें बढ़ाई हैं और हमारी अर्थव्यवस्था को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है लेकिन परेशानियां कोरोना होने से पहले भी थी जिसका समय चलते मोदी सरकार ने कोई उपचार नहीं किया और केवल अनदेखी की। आर्थिक मंदी पैर जमा चुकी थी बेरोजगारी 45 साल में सबसे ऊपर 7.5% पर पहुंच गई थी, उपभोग पूरी तरह से खत्म हो चुका था और इसी के कारण हमारी अर्थव्यवस्था में निवेश भी नहीं हो रहा था। 

 

कोरोनावायरस ने इस आग में इंधन डालने का काम किया है लेकिन हम यह कैसे भूल सकते हैं कि कोरोना से पहले भी लगातार सात तिमाही में आर्थिक वृद्धि दर घटती गई, यही नहीं नोटबंदी के बाद से लगातार GDP वृद्धि की दर गिरती ही जा रही है। अब क्या सरकार इसको भी एक दैविक घटना ही बताएगी?

 

Quarterly GDP Growth

 

Q2 FY19  7.1%

 

Q3 FY19  6.6%

 

Q4 FY19 5.8%

 

Q1 FY20  5.2%

 

Q2 FY20 4.4%

 

Q3 FY20  4.1%

 

Q4 FY20  3.1%

 

Annual GDP Growth

 

FY17    8.3%

 

FY18    7%

 

FY19    6.1%

 

FY20    4.2%

 

सरकार ने अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ा और इसीलिए राजकोषीय सहायता मतलब की fiscal measures में आनाकानी की और सारा का सारा बोझ RBI के ऊपर लाद दिया। RBI ने  ऋण की दर घटाई (1.15%) तरलता बढ़ाई और सरकार को डिविडेंड दिया। लेकिन सरकार ने जबानी जमा खर्च करने के अलावा कोई भी ऐसी नीति नहीं अपनाई जिससे कि भारत की अर्थव्यवस्था वापस सुनियोजित तरीके से  ढर्रे पर आ सके। 20 लाख करोड़ के पैकेज का जुमला देशवासियों को पकड़ा दिया गया, जिसने न बेरोजगारी को खत्म किया, ना ही उपभोग ना ही निवेश बढ़ाने का कोई काम किया। जिसका नतीजा है कि भारत की अर्थव्यवस्था पर कोरोनावायरस और लॉक डाउन का सबसे ज्यादा प्रभाव पड़ा है।

 

RBI द्वारा ऋण  की दर घटाने  के बाद भी लोग भविष्य को लेकर आशंकित होने के कारण ऋण नहीं ले रहे हैं। भविष्य की चिंताओं में घिरे लोगों ने बजाए पैसा खर्चने के बैंकों में जमा करना ज्यादा उचित समझा है और ऋण में वृद्धि की दर लगातार कम होती गई है, जुलाई के  महीने में मात्र 5.4% थी।

 

आर्थिक मंदी का यह आलम है कि 80 लाख लोगों ने लॉकडाउन के दौरान करीब 30,000 करोड़ EPFO से निकाला है जो कि अमूमन लोग अपने भविष्य के लिए सुरक्षित रखते हैं।

 

RBI का कहना है कि यह आर्थिक मंदी का दौर बड़ा है और लंबा चलेगा। RBI ने साफ कहा है कि उपभोग पर इतना गहरा आघात हुआ है कि बहुत लंबे समय के बाद भी इसको सुधारना कठिन होगा इसीलिए आज जरूरत है कि सरकार उपभोग बढ़ाने पर अत्याधिक ध्यान दे। जब उपभोग बढ़ेगा तभी निवेश बढ़ेगा और वहीं से नौकरियां बनेंगी पर ऐसा नहीं होगा तो इस आर्थिक मंदी  के चक्र से निकलना अत्यंत मुश्किल हो जाएगा। इसीलिए हमारा सरकार से सवाल है कि आखिर क्या रणनीति बन रही है इस आर्थिक मंदी को खत्म करने की? आज जरूरत है कि राजकोषीय सहायता की !

 

 

 

एक बात तो साफ है पहले नोटबंदी, फिर त्रुटिपूर्ण GST और उसके उपरांत जो लॉकडाउन मोदी सरकार ने किया उससे ना सिर्फ सूक्ष्म, लघु और मध्यम उद्योगों का नाश हुआ बल्कि बड़े उद्योगों को भी भीषण परेशानियों का सामना करना पड़ा। लोगों ने वेतन खोया, आमदनी के साधन लुप्त हुए और नौकरियां नष्ट हुई। इसका कुप्रभाव ना केवल ग्रामीण क्षेत्रों में, दिहाड़ी मजदूरों, कारीगरों, सूक्ष्म, लघु, मध्यम उद्योगों पर पड़ा है बल्कि इसने मध्यम वर्ग की भी कमर तोड़ दी है, जो अगर समय चलते ध्यान नहीं दिया गया तो विश्व बैंक ने पहले ही चेताया है कि 40 करोड़ लोग हिंदुस्तान में फिर से गरीबी के नीचे जा सकते हैं। जो कि हमारे समाज पर एक बहुत बड़ा कलंक होगा।

 

किसी भी समस्या का समाधान ढूंढने से पहले उसको स्वीकार ना जरूरी होता है, इसीलिए बिना कोई भी समय नष्ट किए सरकार को पहले पूर्ण रूप से अर्थव्यवस्था का आकलन करना होगा। आर्थिक मंदी को स्वीकारना होगा, बहानेबाजी और भाषण बाजी दोनों से ही बचना होगा और एक सुनियोजित तरीके से रणनीति बनाकर इस आर्थिक मंदी के दौर से निपटना होगा। हम आशा करते हैं कि आज का यह GDP संकुचन सोती हुई मोदी सरकार को जगाएगा और अर्थव्यवस्था को सुधारने के उपाय ढूंढने पर मजबूर करेगा। आखिरकार यह 130 करोड़ भारतीयों, हमारे देश के युवाओं और उनके भविष्य का मामला है।

 

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