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जिस मंत्री का संविधान में विश्वास नहीं वह मंत्रिमंडल में कैसे रह सकता है? कांग्रेस का बीजेपी से सवाल

नई दिल्ली वतन समाचार डेस्क: अपर हाउस में विपक्ष के नेता गुलाम नबी आजाद ने पत्रकारों को संबोधित करते हुए कहा कि आज दोनों सदन नहीं चले, लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही बिल्कुल नहीं चली और उसका कारण है कि केन्द्रीय मंत्रीमंडल के एक मंत्री अनंत कुमार हेगड़े का आपत्तिजनक बयान है। शायद उन्हीं आपत्तिजनक बयानों के कारण भारतीय जनता पार्टी की लीडरशिप ने उनको मंत्री का पद ईनाम में दिया है, लेकिन मंत्रीमंडल में आने के बाद उम्मीद थी कि वह कोई भी ऐसा बयान नहीं देंगे जो एक केन्द्रीय मंत्री को नहीं देना चाहिए, लेकिन उन्होंने इसकी कोई परवाह नहीं की। एक तो उन्होंने कहा है कि बीजेपी को सत्ता में इसलिए लाया गया कि, उन्हें भारत का संविधान तब्दिल करना है। दूसरा आपत्तिजनक शब्द जो उन्होंने इस्तेमाल किया अपने भाषण में कि, वो लोग जो अपने आपको धर्मनिरपेक्ष समझते हैं, सेक्युलर समझते हैं या सेक्युलरिज्म पर विश्वास है, उनके parentage का ही पता नहीं, मतलब उनका माँ-बाप कौन था। तो सेक्युलरिज्म तो हमारे Constitution का स्तंभ है और जो मंत्री Constitution, भारत के संविधान में एमपी के रुप में शपथ ले और बाद में राष्ट्रपति के हाथों वहाँ पर मंत्रीमंडल में शामिल होने का, संविधान के नाम पर शपथ ले और संविधान को मानता ही नहीं हो। आज़ाद ने कहा कि मूल सवाल हमने सदन में उठाया है कि क्या एक संसद का सदस्य, क्या एक मंत्री सरकार में रहते हुए, यह कह सकता है कि उसे भारत के संविधान में विश्वास नहीं? जिस मंत्री को भारत के संविधान पर ही विश्वास नहीं है और संविधान में जो चीजें लिखी गई हैं, preamble पर विशेष रुप से, उन्हीं पर विश्वास नहीं है तो, क्या वह व्यक्ति मंत्रीमंडल में रह सकता है या नहीं? ये बुनियादी सवाल है। सरकार ने कहा कि, सरकार इसमें सहमत नहीं, लेकिन सरकार की सहमति और असहमति का सवाल नहीं है। ये सरकार ने तो कहा ही नहीं, ये एक व्यक्ति ने कहा, एक मंत्री ने कहा। उस मंत्री को सदन में आना चाहिए। वो सदन में थे, भाग गए। उनको दोनों सदनों में देश से, जनता से, पार्लियामेंट से माफी मांगनी चाहिए और अगर ऐसा नहीं करते हैं तो, उनको मंत्रीमंडल से बर्खास्त कर देना चाहिए। एक बड़ी गलत परंपरा इस देश में बनी है कि रुलिंग पार्टी के एमपी जो भी चाहें, जब चाहें, ऐसे उल्टे-सीधे बयान देते रहते हैं, चुनाव के बगैर, चुनाव के दौरान और चुनाव के अलावा। इनको कोई पूछता नहीं है। कई ऐसे मंत्री हैं, जो बयान देते रहे हैं, उनके खिलाफ भी आजतक कोई कार्यवाही नहीं की गई। हमारा यह मानना है कि ‘सबका साथ सबका हाथ’, खाली दिखावा है, ये खाली बोलने के लिए है, लेकिन काम इसके विपरीत हो रहा है, उल्ट हो रहा है।

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