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गुरबत-व-जिहालत और हमारी जिम्मेदारियां

हमारे जिस्म में जब कभी कोई वायरस प्रवेश करता है या जिस्म में कोई ज़ख़्म निकल आता है तो दर्द के कारण हमारे जिस्म का एक-एक अंग बेचैन हो उठता है, और हम उसके एलाज के लिए माहिर और तजुर्बेकार डाक्टरों से संपर्क करते हैं और डाक्टरों के आदेश-अनुसार दवा आदि लेते हैं और उन की ओर से जो भी सलाह-मशवरा मिलता है उसका पालन हम आंख बंद करके करते हैं। इस का परिणाम यह निकलता है कि हम न सिर्फ़ वायरस या ज़ख़्म से निजात पा लेते हैं बल्कि जिस्म का हर हिस्सा भी सुरक्षित रहता है और हम बड़े इत्मीनान के साथ अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ने लगते हैं।

By: वतन समाचार डेस्क
  • गुरबत-व-जिहालत और हमारी जिम्मेदारियां

  • डॉक्टर जहांगीर हसन मिस्बाही

प्यारे पाठक! हमारे जिस्म में जब कभी कोई वायरस प्रवेश करता है या जिस्म में कोई ज़ख़्म निकल आता है तो दर्द के कारण हमारे जिस्म का एक-एक अंग बेचैन हो उठता है, और हम उसके एलाज के लिए माहिर और तजुर्बेकार डाक्टरों से संपर्क करते हैं और डाक्टरों के आदेश-अनुसार दवा आदि लेते हैं और उन की ओर से जो भी सलाह-मशवरा मिलता है उसका पालन हम आंख बंद करके करते हैं। इस का परिणाम यह निकलता है कि हम न सिर्फ़ वायरस या ज़ख़्म से निजात पा लेते हैं बल्कि जिस्म का हर हिस्सा भी सुरक्षित रहता है और हम बड़े इत्मीनान के साथ अपनी मंज़िल की ओर आगे बढ़ने लगते हैं।

 

लेकिन इसके विपरित अगर जिस्म में मौजूद वायरस या ज़ख़्म का समय पर इलाज नहीं हो पाता है तो फिर यही वायरस और ज़ख़्म एक दिन हमारे जिस्म के लाए नासूर बन जाता है और यूं जिवन भर हम उस की टीस महसूस करते रहते हैं। इस संदर्भ में अगर हम अपने देश और समाज का आकलन करें तो साफ़ तौर पर मालूम होता है कि हमारे आस-पास चारों ओर गुरबत और जिहालत के वायरस का एक मज़बूत जाल फैला हुआ है मगर अफ़सोस कि इस ओर हमारा कोई ध्यान नहीं जाता है। बल्कि हमारी हालत तो यह हो गई है कि हम सामने वाले की गुरबत और जिहालत का मज़ाक़ उड़ाने का कोई अवसर हाथ से जाने नहीं देते। फिर अगर हम से कोई कहता है कि आएं हम सब मिल कर अपने देश और समाज से गुरबत और जिहालत का सर्वनाश करें तो हम बगलें झांकने लगते हैं। हालांकि जिस धर्म को हम मानते हैं उस में मौजूद ज़कात का सिस्टम और पढ़ने-पढाने पर सबसे ज्यादा ज़ोर देने से साफ़ तौर पर यह ज्ञात होता है कि जिस तरह हम पर पढ़ना-पढाना अनिवार्य है उसी तरह़ ज़कात सिस्टम को सख़्ती से अपनाते हुए देश और समाज के अर्थव्यवस्था को मजबूत करने में हिस्सा लेना भी हम सब पर अनिवार्य है।

 

 

 वर्ना हम व्यक्तिगत स्तर पर चाहे जितनी भी तरक्की कर लें सामुहिक स्तर पर बुनियादी तरक्की से वंचित ही रहेंगे। इस लिए अगर हम चाहते हैं कि व्यक्तिगत रूप से तरक्की के साथ सामुहिक रूप से और बुनियाद तरक्की से जुड़े रहें तो हमारे ऊपर अनिवार्य है कि ईमानदारी के साथ ज़कात निकालनें और साथ ही उस के सही ह़क़दारों तक उसको पहुंचाएं और अपने आस-पास मौजूद ऐसे बच्चों की शिक्षा की जिम्मेदारी भी अपने ऊपर अनिवार्य कर लें जिन की शिक्षा का कोई प्रबंध नहीं हो पाता है और इस कारण‌ यही अशिक्षित बच्चे देश और समाज के हित में‌ घातक साबित होते हैं और फिर हमेशा के लिए वह एक नासूर बन जाते हैं।

 

 

 

या अगर हम ज़कात निकालते हैं लेकिन उसे सही ह़क़दारों तक नहीं पहुंचा पाते हैं तो याद रखें कि ज़कात निकालने की जवाबदेही तो ख़त्म हो जाएगी मगर ज़कात का वह मक़सद हासिल नहीं हो पाएगा जो अल्लाह और उसके पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद को पसंद है और यह भी याद रखें कि ज़कात का मक़सद हासिल न होने पर क़यामत और हिसाब-किताब के दिन हम से पूछा जाएगा कि अपने मातहतों (ग़रीबों) के विषय में हम ने क्या जिम्मेदारी निभाई?

 

 

इस के बावजूद अगर हम अपने देश और समाज में मौजूद गुरबत और जिहालत के वायरस की चिंता नहीं करते तो इस का परिणाम भुगतने पड़ेगे। बल्कि आज हम भुगत रहे हैं जैसे कि आज हर तरह़ की सहूलियात मौजूद हैं लेकिन सामुहिक और राष्ट्रीय उन्नति न होने के कारण न इत्मीनान हासिल है और न ही कुछ सुकून, जिन्हें हम समझ नहीं पा रहे हैं या फिर अनजान बनने की कोशिश करते हैं। यह हाल उन लोगों का है जो पाबंदी से ज़कात निकालते हैं लेकिन वह असल ह़क़दारों तक नहीं पहुंचा पाते हैं। दुसरी ओर हमारे बीच ऐसे लोग भी हैं जो मालदार होने पर भी ज़कात निकालने में सुस्ती करते हैं, ज़कात निकालने के विषय में बिलकुल संजीदा नहीं होते और एक अंदाजे से कुछ रूपे निकाल देते हैं और ग़रीबों में बांटने के बाद यह समझते हैं कि उन्होंने ज़कात निकाल दिया। जबकि ऐसे लोग बेहिसाब रूपे-पैसे बांटने के बाद भी सख़्त नुक़सान में रहते हैं क्योंकि एक तो उन की ज़कात धर्म के अनुसार नहीं निकल पाती और दुसरे यह कि वह धर्म की दृष्टि से मुजरिम ठहरते हैं, इस लिए अनिवार्य है कि हम पहले अपने सारे धन का हिसाब-किताब करें और फिर उसी के अनुसार ज़कात निकालें।

 

 

आज हम जो शिक्षा और उन्नति के विषय में सबसे निचले पायदान पर हैं तो इस का एक ही कारण है कि हमारे देश और समाज के लोगों ने ज़कात सिस्टम को ताक़ पर रख दिया है और शिक्षा को सिर्फ अपने घर और ख़ानदान के लिए ख़ास समझ लिया है। जैसे एक ओर धर्म के अनुसार ज़कात न निकाल कर अपनी मर्जी से ज़कात निकालते हैं और दूसरी तरफ अपने बच्चों की शिक्षा पर पानी की तरह दौलत बहाते हैं मगर जब कभी ग़रीब बच्चों की शिक्षा पर खर्च करने के लिए कहा जाता है इन की जान निकल जाती है। और इस का नुक़सान यह होता है कि ज़कात निकालने के बाद भी ग़रीबों की लिस्ट ख़त्म नहीं होती और हर तरह़ की टेक्नोलॉजी के बावजूद भी शिक्षा के अस्तर में उन्नति नहीं होपा रही है और आज हमारे देश और समाज का हाल यह है कि यह दिन-ब-दिन गुरबत और जिहालत के शिकंजे में कसता चला जा रहा है और हम आधुनिक उन्नति से कोसों दुर होते चले जा रहे हैं, यह भयानक पहलू हम सब के लिए चिंताजनक है।

 

 

अंत में हम यही कहना चाहते हैं कि आज-कल हमारे बीच एक पवित्र महीना है तो हमारे पूंजीपति इस पवित्र महीने का लाभ उठायें, अपनी सम्पूर्ण सम्पत्ती का हिसाब-किताब करें और पाई-पाई की ज़कात निकालें, फिर उसके असल ह़क़दारों तक पहुंचाएं। साथ ही अपने आप से यह वादा करें कि हम प्रत्येक साल अपने देश और समाज के कम से कम एक या दो बच्चों की शिक्षा का प्रबंध करेंगे। अगर ऐसा हो जाता है तो वह दिन दूर नहीं कि हमारे बीच मौजूद गुरबत और जिहालत का वायरस समाप्त हो जाएगा और फिर हमें धार्मिक और दुनिया दोनों अस्तर पर कामयाब होने से कोई नहीं रोक सकता।

(संपादक: ख़िज़्र राह मासिक, सैयद सरावां)

 

डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है.


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