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पैगाम ए कर्बला और एन आर सी व एन पी आर तहरीक

मुल्कगीर अवामी तहरीक के बावजूद मर्कजी हुकूमत एन पी आर कराने पर मुसिर थी कि अचानक गैरकांग्रेसी रियास्ती सरकारों ने यके बाद दीगरे एन पी आर के खिलाफ तजवीज पेश करके उसे मंजूर करना शुरू कर दिया । वो लोग जो मुस्लमानों की सियासी वजन पर फातिहा पढ़ चुके थे इस बात का तसव्वुर भी नहीं कर सकते थे एक एक करके ग्यारह सूबे अपने यहां एन पी आर कराने से इनकार कर देंगे । इस मश्क़ के लिए चूँकि मर्कजी हुकूमत को मुकम्मल तौर पर रियास्ती सरकार पर इन्हिसार करना पड़ता है इसलिए मर्कज बे-दस्त व पा होता चला गया और लोगों ने हिसाब लगाना शुरू कर दिया कि कितने फीसद लोगों का नाम रजिस्टर में आएगा और कितने उस से बाहर रह जाऐंगे? दिल्ली की इंतिख़ाबी मुहिम और फिर्कावाराना फसाद के दौरान वजीरे आला अरविंद केजरीवाल ने जो मुहतात रवैय्या इखतियार किया था उसे देखकर हर कस व ना-कस उन्हें बी जे पी की बी टीम कहने लगा था लेकिन हैरतअंगेज तौर पर दिल्ली की एसेंबली ने भी एन पी आर के खिलाफ करारदाद मंजूर कर ली । ये मर्कजी हुकूमत की बहुत बड़ी रुस्वाई थी क्योंकि मुल्क भर में एन पी आर नाफिज करने वाले अमित शाह समेत वजीरे आजम और सद्रे मम्लिकत के नाम का नेशनल पापोलेशन रजिस्टर में दर्ज ना होना मामूली बात थी।

By: Guest Column
  • पैगाम ए कर्बला और एन आर सी व एन पी आर तहरीक
  • डाक्टर सलीम खान

यकुम मुहर्रम को दूरदर्शन उर्दू से अगले दस दिन तक ‘‘पैगामे कर्बला’’ उनवान के तहत रोजाना प्रोग्राम नश्र करने का ऐलान किया गया । ये एक हकीकत है कि फीजमाना शहरों में बेशुमार टीवी चैनल्ज की भीड़ के सबब कम लोग दूरदर्शन की जानिब मुतवज्जा होते हैं, लेकिन देश के तूल व अर्ज में जहां डिश टेलीवीजन अभी तक नहीं पहुंचा इसी चैनल से करोडों लोग इस्तिफादा करते हैं। डी डी दुनिया भरके 54 से ज्यादा ममालिक में देखा जाता है लेकिन सच तो ये है कि इमाम हुसैन की शहादत और वाकिया कर्बला का पैगाम किसी चैनल का मुहताज नहीं है। आलमे इन्सानियत में वकतन फवकतन ज़ुल्म व जब्र के खिलाफ सीना-सपर होने वाले हक के अलमबरदार न सिर्फ वाकिया कर्बला से हौसला पाते हैं बल्कि उसकी याद भी ताजा करते रहते हैं। इस तनाजुर में शायर शबाब जोश मलीहाबादी की ये रुबाई याद है

क्या सिर्फ मुसलमान के प्यारे हैं हुसैन

चर्खे नौए बशर के तारे हैं हुसैन

इन्सान को बेदार तो हो लेने दो

हर कौम पुकारेगी, हमारे हैं हुसैन

पिछले साल हिन्दुस्तान में हुकूमत की जानिब से वजा करदा कानून सी ए ए में तरमीम, एन पी आर और एन आर सी के खिलाफ एक मुल्कगीर और मुनफरिद तहरीक उठी। उसमें एक तरफ हुकूमत और उसकी मशीनरी थी जिसमें मीडीया पेश पेश था और दूसरी जानिब चंद नौजवान, तलबा और खवातीन थीं। उन दोनों फरीकों के बीच वसाइल और ताकत को लेकर सिरे से कोई मुवाजना ही नहीं था । उस के बावजूद हक के अलमबरदार मुट्ठी भर लोग डट गए । शाहीन बाग के खेमे दिल्ली से निकल कर देश के तूल व अर्ज में फैल गए और जगह जगह से उठने वाले एहतिजाज से बातिल के ऐवानों में लर्जा तारी हो गया। शाहीन बागों के खिलाफ तरह तरह के हरबे आजमाये गए। दुश्नाम तराजी से बात नहीं बनी तो बंदूक बर्दार हमलावरों तक की मदद ली गई लेकिन वो जाँबाज अपनी जगह से न हटे और न झुके। बी जे पी की सूबाई हुकूमतों ने उन पर मजालिम के मुख़्तलिफ पहाड़ तोड़े लेकिन कामयाबी नहीं मिली । बी जे पी मुखालिफ रियास्ती सरकारों का रवैय्या भी इब्तिदा में मुआनिदाना ही रहा उसके बावजूद मुजाहिरीन के पाए इस्तिकलाल पर इर्फान सिद्दीकी का ये शेअर सादिक आता था:

हवाए कूफ़ा-ए नामेहरबाँ को हैरत है

ये लोग ख़ेमा-ए सब्रो रजा में ज़िंदा हैं

मुल्कगीर अवामी तहरीक के बावजूद मर्कजी हुकूमत एन पी आर कराने पर मुसिर थी कि अचानक गैरकांग्रेसी रियास्ती सरकारों ने यके बाद दीगरे एन पी आर के खिलाफ तजवीज पेश करके उसे मंजूर करना शुरू कर दिया । वो लोग जो मुस्लमानों की सियासी वजन पर फातिहा पढ़ चुके थे इस बात का तसव्वुर भी नहीं कर सकते थे एक एक करके ग्यारह सूबे अपने यहां एन पी आर कराने से इनकार कर देंगे । इस मश्क़ के लिए चूँकि मर्कजी हुकूमत को मुकम्मल तौर पर रियास्ती सरकार पर इन्हिसार करना पड़ता है इसलिए मर्कज बे-दस्त व पा होता चला गया और लोगों ने हिसाब लगाना शुरू कर दिया कि कितने फीसद लोगों का नाम रजिस्टर में आएगा और कितने उस से बाहर रह जाऐंगे? दिल्ली की इंतिख़ाबी मुहिम और फिर्कावाराना फसाद के दौरान वजीरे आला अरविंद केजरीवाल ने जो मुहतात रवैय्या इखतियार किया था उसे देखकर हर कस व ना-कस उन्हें बी जे पी की बी टीम कहने लगा था लेकिन हैरतअंगेज तौर पर दिल्ली की एसेंबली ने भी एन पी आर के खिलाफ करारदाद मंजूर कर ली । ये मर्कजी हुकूमत की बहुत बड़ी रुस्वाई थी क्योंकि मुल्क भर में एन पी आर नाफिज करने वाले अमित शाह समेत वजीरे आजम और सद्रे मम्लिकत के नाम का नेशनल पापोलेशन रजिस्टर में दर्ज ना होना मामूली बात थी।

ये तो खैर हिज्बे इख्तिलाफ की हुकूमत वाली रियास्तें थीं लेकिन बिहार में बी जे पी की एन डी ए सरकार है । इस का बजट इजलास 25 फरवरी से शुरू हुआ तो हिज्ब इख्तिलाफ ने एन पी आर और एन आर सी के खिलाफ नीतीश हुकूमत पर हल्ला बोल दिया । अपोजीशन लीडर तेजस्वी प्रसाद यादव ने जब एन पी आर और एन आर सी के खिलाफ नीतीश कुमार से सवाल किया और उसके खिलाफ करारदाद मंजूर करने की अपील की तो उनके खाब व खयाल में भी ये बात नहीं रही होगी कि इस का क्या जवाब मिलेगा । वजीरे आला नीतीश कुमार ने बरमला एतिराफ कर लिया कि एन पी आर में इजाफी सवालात के सबब अवाम की परेशानी में इजाफा होगा, इसलिए पुराने फॉर्मेट के मुताबिक एन पी आर किया जाएगा । होना तो ये चाहिए था कि मर्कज में अपनी पार्टी के जरिये नाफिज किए जानेवाले फैसले की हिमायत में बी जे पी के रियासती रहनुमा और नायब वजीरे आला सुशील कुमार मोदी मैदान में आते लेकिन उन्होंने भी सपर डालते हुए कह दिया एन डी ए वजीरे आला के साथ खड़ी है और एन पी आर 2010 के मुताबिक ही किया जाएगा । ये इस तहरीक की बहुत बड़ी कामयाबी थी कि जिसने हिज्बे इक़्ितदार के खेमे को भी झुकने पर मजबूर कर दिया था। वाकया-ए कर्बला का यही तो पैगाम है कि मकसद जिंदगी से इश्क़ बेसरो सामानी के बावजूद कामयाबी से हमकिनार करता है। बाक़ौल शायर:

जिंदगी के दीवानो, सूए कर्बला देखो

इश्क़ किस सलीक़े से जिंदगी में ढलता है

रियासती इंतिखाब से पहले वो सूबाई एसेंबली का आखिरी इजलास था और नीतीश कुमार को मुस्लमानों की नाराजगी का एहसास हो चुका था। सियासी सूरते हाल कुछ इस तरह की बन गई थी कि मुस्लमानों की हिमायत के बगैर नीतीश की कामयाबी नामुमकिन थी और नीतीश के बगैर बी जे पी का इक्तिदार में आना मुहाल था । वजीरे आला को बी जे पी की इस मजबूरी का एहसास था इसलिए उन्होंने पूरा पूरा फायदा उठा लिया। नीतीश ने एक ऐसा रास्ता निकाला कि साँप तो मर जाये मगर लाठी न टूटे। यानी सरकार बची रहे और मुसलमान नाराज भी ना हों । इस इक्दाम ने हिज्बे इख्तिलाफ को भी इस करारदाद की हिमायत करने पर मजबूर कर दिया था और ये इत्तिफाक राय से मंजूर हुई थी। इस तरह एन पी आर में शामिल किए गए दो नए सवालात जिनसे तशवीश पैदा हुई थी यानी वालिदैन की जाये पैदाइश और तारीख़ के साथ माजी में रिहाइश की तफसील का सफाया हो गया। शहरीयत के बारे में कोई सबूत के बजाय जो कुछ भी बता दिया जाये उसे लिख लेने की रिवायत रही ।

ये कोई अचानक किया जाने वाला फैसला नहीं था बल्कि मजकूरा इजलास में उर्दू में इफ्तिताही खिताब पढ़ कर स्पीकर विजय कुमार चैधरी पहले ही सबको चैंका चुके थे। इस पर नाराज होकर झाझा के एम एल ए रवींद्र यादव और दरभंगा के एम एल ए संजय सरोगी ने विजय कुमार चैधरी के सूबे की दूसरी सरकारी जबान उर्दू में तक़रीर करने पर ‘लाहौल वला कूव्वत’ कहा । इस के जवाब में वजीरे तालीम कृष्ण नंदन ने ‘सुब्हान-अल्लाह’ कह कर बी जे पी वालों को और चिढ़ा दिया और वो जय श्री राम का नारा लगाने लगे । ताज्जुब की बात ये कि सद्रे मजलिस की तक़रीर पर एतिराज करने वाले भी एन पी आर के मामले में नीतीश की मुखालफत करने की जुर्रत नहीं दिखा सके क्योंकि ये उनकी अपनी पार्टी का फैसला था और इसकी मुखालफत करने की सियासी कीमत चुकानी पड़ सकती थी । इंतिखाब की क़ुरबत सियासतदानों को नज्म व जब्त का इसलिए पाबंद बना देती है क्योंकि बसूरते दीगर टिकट कटने का ख़तरा रहता है।

बिहार में फरवरी में जो कुछ हुआ वही खामोशी के साथ 30 जुलाई 2020 को मर्कजी हुकूमत ने कर दिया । रजिस्ट्रार जनरल ऐंड सेंसस (मर्दुम-शुमारी) कमीशन की वबसाइट पर पहले एन पी आर से मुताल्लिक जो सवालात दर्ज थे उनमें से इजाफी मुतनाजे इस्तिफसार को हटा कर सिर्फ 2010 के सवालात छोड़ दिए गए । ये तनाजा वजीरे दाखिला के एन पी आर को एन सी आर से जोड़ने और सी ए ए के साथ उसकी क्रोनोलोजी बयान से पैदा हुआ था । वेबसाइट पर होने वाली ये तब्दीली मर्कजी हुकूमत का एक बहुत बड़ा यू टर्न है लेकिन चूँकि सुबकी होती है इसलिए इसकी पर्दापोशी की गई । इस तब्दीली के बाद रोजनामा भास्कर के नामा निगारों ने वजारते दाख़िला से वजाहत तलब की लेकिन वहां से कोई जवाब नहीं आया । सी ए ए की तहरीक के तीन मुतालिबात में एन आर सी और एन आर पी भी शामिल था। वजीरे आजम ने इस बाबत पहले तो कहा कि शहरियत कानून का हिन्दुस्तानी मुस्लमानों से कोई ताल्लुक नहीं है और फिर ये कह कर वजीरे दाख़िला को मुश्किल में डाल दिया कि एन आर सी पर पार्लीमान या काबीना में कोई बात ही नहीं हुई। अब जो तीसरा एन आर पी का मामला बचा था उसपर सरकार ने मनमोहन सिंह के नक्शे कदम पर चलने का इरादा कर लिया है। इस तरह ये कहा जा सकता है कि फिलहाल हुकूमत को तीनों महाज पर पीछे हटना पड़ा है। ये मुजाहमती तहरीक की बहुत बड़ी कामयाबी है इस पर अल्लाह रब्बुल इज़्ज़त का शुक्र अदा करते हुए उसकी हम्द व सना की जानी चाहिए। नीज अपनी भूल चूक के लिए तौबा इस्तिग़फ़ार करना चाहिए। सूरा नस्र में यही तालीम दी गई है। इस मौका पर अपने आपको नाकाबिले तस्खीर समझने वाली हुकूमत पर ये शेअर सादिक आता:

यज़ीद तू ने तो कुछ देर जिंदगानी की

मेरे हुसैन  ने सदियों पे  हुक्मरानी की

 

-डिस्क्लेमर (अस्वीकरण) : इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं. इस आलेख में दी गई किसी भी सूचना की सटीकता, संपूर्णता, व्यावहारिकता अथवा सच्चाई के प्रति वतन समाचार उत्तरदायी नहीं है. इस आलेख में सभी सूचनाएं ज्यों की त्यों प्रस्तुत की गई हैं. इस आलेख में दी गई कोई भी सूचना अथवा तथ्य अथवा व्यक्त किए गए विचार वतन समाचार के नहीं हैं, तथा वतन समाचार उनके लिए किसी भी प्रकार से उत्तरदायी नहीं है. लेखक अफ्फान नोमानी, रिसर्च स्कॉलर स्तंभकार व लेक्चरर है .


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