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जानिए जमीयत के दोनों धड़ों के विलय में असली रोड़ा कौन?

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नई दिल्ली, वतन समाचार ब्योरो: देश की आजादी में अज़ीम रोल (किरदार) अदा करने वाली जमीयत उलेमा ए हिंद के हवाले से एक बार फिर बड़ी खबर सामने आई है. पिछले कुछ सालों से जमीयत उलमा हिंद के दोनो धड़ों के एक साथ आने की बातें वक़्त वक़्त पर सामने आती रही हैं. बीते माह एक बार फिर इस मामले में उस वक़्त नया मोड़ आगया जब जमीयत उलेमा ए हिंद (A) के राष्ट्रीय अध्यक्ष मौलाना सैयद अरशद मदनी ने जमीयत उलेमा ए हिंद के 100 साला जश्न के लिए मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा-ए-हिंद को पत्र लिखा था. पत्र में मौलाना सैयद अरशद मदनी ने अपील की थी कि जमीयत का सौ साल का जश्न दोनों धड़ों को एक साथ मनाना चाहिए. अब खबर यह है कि मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलेमा ए हिंद ने मौलाना सैयद अरशद मदनी के पत्र पर अपनी वर्किंग कमेटी गंभीर विचार करने के बाद इस सिलसिले में वर्किंग समिति से यह प्रस्ताव पास कर के मौलाना अरशद मदनी को भेज दिया कि जमीअत के दोनों धडों का विलय होना चाहिए. समिति ने यह प्रस्ताव पास किया कि जमीयत उलेमा-ए-हिंद के एक बार फिर से मिलजुल कर काम करने का वक्त आ गया है. बीती दिनों मौलाना अरशद मदनी के बांग्लादेश यात्रा से वापसी के बाद इस संबंध में जब मौलाना सैयद अरशद मदनी से वतन समाचार ने बात की तो वह इस सवाल को टाल गए, और कोई जवाब नहीं दिया. मौलाना महमूद मदनी के नेतृत्व वाली जमीयत उलमा ए हिंद की कल (12-01-2018) को होने वाली वोर्किंग समिति को देखते हुए आज जब वतन समाचार ने समिति के सदस्य अधिवक्ता नियाज़ फारूकी से बात की तो उन्हों ने बताया कि वर्किंग कमेटी से रिजोल्यूशन पास करके मौलाना सय्यद अरशद मदनी की सहमती (मंजूरी) के लिए भेज दिया था. एडवोकेट नियाज़ फारूकी ने वतन समाचार से बातचीत में बताया कि इस संबंध में हम ने एक प्रपोजल मौलाना सैयद अरशद मदनी को भेजा था. उन्हों ने बताया कि इस सिलसिले में मौलाना अरशद मदनी की ओर से क्या हुआ इस के बारे में अभी उन के पास कोई अपडेट नहीं है. एक सवाल के जवाब में उन्हों ने बताया कि यह सही है कि कल वर्किंग कमेटी की बैठक आयोजित होनी है, लेकिन जहां तक सवाल कल की बैठक में जमीयत उलमा हिंद के दोनों धड़ों के विलय का है तो यह कल की बैठक का एजेंडा नहीं है. [caption id="attachment_3674" align="alignnone" width="457"] मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी[/caption] ज्ञात रहे कि पिछले कई महीने से मौलाना महमूद मदनी सार्वजनिक मंचों से मौलाना सैयद अरशद मदनी को जमीयत उलमा हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते आए हैं. पिछले 2-3 बैठकों में यह बात देखने में आई है कि मौलाना महमूद मदनी मौलाना अरशद मदनी के नाम के आगे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष का पद लगाते आये हैं, A और M से हट कर. इस से साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मौलाना महमूद मदनी 'मौलाना सैयद अरशद मदनी' को जमीयत उलेमा हिंद का अध्यक्ष/मुखिया देखना चाहते हैं, और वह चाहते हैं कि जमीयत के दोनों धड़े एक साथ मिल कर काम करें और मौलाना अरशद मदनी की ओर से भी यह बात देखने को मिली है, लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिर वह कौन सी चीज है जो जमीयत के दोनों धड़ों के एक साथ आने की राह का रोड़ा बनी हुई है. इस पर जमीयत उलेमा के दोनों धड़ों के जिम्मेदारों को आपस में संजीदगी से बैठकर गौर करना होगा. ज्ञात रहे कि जमीयत उलेमा हिंद का गठन 1919 में आज़ादी से पहले हुआ था. इसके गठन की सबसे पहली कोशिश देश की अज़ीम हस्ती मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने की थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से 1995 में प्रकाशित जमीयत उलेमा हिंद के प्रवक्ता अखबार "अल जमीयत" के अनुसार जमीयत उलमा हिंद के 1919 में गठन के पीछे और उस के मुहर्रिक मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी और उन की कोशिशें थीं. कहा जाता है कि अगर कोई एक नाम जमीयत के गठन के लिए लिया जायेगा तो वह मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी का होगा, लेकिन उलेमा के एक गुरुप ने मिल कर इस का गठन किया था.

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