मौलाना अरशद मदनी और मौलाना महमूद मदनी[/caption]
ज्ञात रहे कि पिछले कई महीने से मौलाना महमूद मदनी सार्वजनिक मंचों से मौलाना सैयद अरशद मदनी को जमीयत उलमा हिंद का राष्ट्रीय अध्यक्ष कहते आए हैं. पिछले 2-3 बैठकों में यह बात देखने में आई है कि मौलाना महमूद मदनी मौलाना अरशद मदनी के नाम के आगे जमीयत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष का पद लगाते आये हैं, A और M से हट कर.
इस से साफ जाहिर है कि कहीं न कहीं मौलाना महमूद मदनी 'मौलाना सैयद अरशद मदनी' को जमीयत उलेमा हिंद का अध्यक्ष/मुखिया देखना चाहते हैं, और वह चाहते हैं कि जमीयत के दोनों धड़े एक साथ मिल कर काम करें और मौलाना अरशद मदनी की ओर से भी यह बात देखने को मिली है, लेकिन अहम सवाल यह है कि आखिर वह कौन सी चीज है जो जमीयत के दोनों धड़ों के एक साथ आने की राह का रोड़ा बनी हुई है.
इस पर जमीयत उलेमा के दोनों धड़ों के जिम्मेदारों को आपस में संजीदगी से बैठकर गौर करना होगा.
ज्ञात रहे कि जमीयत उलेमा हिंद का गठन 1919 में आज़ादी से पहले हुआ था. इसके गठन की सबसे पहली कोशिश देश की अज़ीम हस्ती मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी ने की थी. जमीयत उलेमा-ए-हिंद की ओर से 1995 में प्रकाशित जमीयत उलेमा हिंद के प्रवक्ता अखबार "अल जमीयत" के अनुसार जमीयत उलमा हिंद के 1919 में गठन के पीछे और उस के मुहर्रिक मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी और उन की कोशिशें थीं.
कहा जाता है कि अगर कोई एक नाम जमीयत के गठन के लिए लिया जायेगा तो वह मौलाना सनाउल्लाह अमृतसरी का होगा, लेकिन उलेमा के एक गुरुप ने मिल कर इस का गठन किया था.
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