वक्फ़ संपत्तियों पर लगातार हो रहे कब्जों पर चिंता प्रकट करते हुए केंद्रीय वक्फ़ परिषद के सदस्य रईस खान पठान ने आज कहा है कि तकरीबन सभी राज्यों में वक्फ बोर्ड का वजूद है मगर पावर के बगैर यह सभी बोर्ड नाम के हैं. उन्होंने कहा कि अगर कोई सरकारी एजेंसी या कोई बुलडोजर वक्फ़ संपत्ती पर कब्जा करता है. या वहां बुलडोजर चलाने आता है तो उसे पूरी पुलिस फोर्स मुहैया कराई जाती है, लेकिन जब बोर्ड के अधिकारी उसको बचाने के लिए कोशिश करते हैं तो उनकी शिकायत अनदेखी कर जाती है. जबकि वक्फ़ एक्ट पार्लियामेंट से पारित हुआ है और उसे पास किया गया.
उन्हों ने कहा कि सभी वक्फ बोर्डों को उतनी ही कानूनी हैसियत हासिल है जितनी की दूसरी सरकारी एजेंसियों को, लेकिन अफसोस की बात यह है कि आज भी रिकॉर्ड में वक्फ़ संपत्तियों को सरकारी संपत्ति कहा जाता है. रिकार्ड में जहां मिल्कियत का खाना है वहां आज भी सरकार दौलत मदार लिखा है और वक्फ़ संपत्तियों पर सरकारी कब्जे की यह सबसे बड़ी दलील है.
DDA हो या कोई और दूसरी सरकारी एजेंसी जब वह कब्जा करते हैं तो यही कहा जाता है कि यह वक्फ़ नहीं बल्कि सरकार की संपत्ति है और जब मामला कोर्ट जाता है तो अक्सर वहां सरकार के हक में फैसला होता है. उन्होंने कहा कि ताजा मिसाल 29 नवंबर 2017 की है जब मिन्टो रोड क़ब्रस्तान पर कब्जा कर लिया गया. इस के साथ लोधी रोड लाल मस्जिद पर भी CRPF ने क़ब्ज़ा कर रखा है और उसे भी ख़ाली नहीं कराया जा रहा है.
उन्हों ने कहा कि ऐसा नहीं है कि वक्फ़ बोर्ड ने हाथ खड़े कर रखे हों, बल्कि बोर्ड ने कई संपत्तियों को खाली भी कराया है और कोर्ट से उस पर कब्ज़ा भी लिया है, जो आज बोर्ड के कब्जे में हैं, लेकिन यह कड़वी सच्चाई है कि पूरे देश में वक्फ़ माफिया काम कर रहा है और वह वक्फ़ अधिकारियों की मदद से वक्फ़ संपत्तियों पर कब्जे कर रहा है, जिस पर लगाम लगाने की सख्त जरूरत है.
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