मोहम्मद अहमद
नई दिल्ली, वतन समाचार न्यूज़:
यूरो फोब्स वाटर टेक प्राइवेट लिमिटेड के डायरेक्टर वाहिद अली ने
वतन समाचार से अपनी जिंदगी के कुछ अनछुए पहलुओं पर बात की. बातचीत में उन्होंने बताया कि मैंने अपने पुश्तैनी काम चावल को छोड़कर जब एक अलग जीवन में कदम रखने का फैसला किया, तो यह मेरे लिए कोई आसान काम नहीं था. उन्होंने बताया कि चावल के सफर में पिता का साथ छूट चुका था, इसलिए मैं अकेला पड़ गया. उन के जाने का बोझ मेरे नाजुक कंधे उठाने के लिए तैयार नहीं थे, क्योंकि जब पिता का साया सर से उठ जाए तो फिर इंसान को खुद को संभालने में बड़ी देर लग जाती है.इसी गम में मैंने अपने पुश्तैनी कारोबार को छोड़ने का फैसला किया.
बाराबंकी से जब मैं दिल्ली कूच कर रहा था तो उस वक्त मैंने लोगों को बुलाकर उनकी एक एक पाई का हिसाब दे दिया. जब मैं आने लगा तो लोगों की आंखों में आंसू थे, क्योंकि वह किसी अपने को अपने से दूर जाता देख रहे थे. उन का कहना था कि कोई ऐसा व्यापारी पहली बार बाराबंकी की सर जमीन पर आया था जो अपना सब कुछ लोगों को दे कर जा रहा है. उन्होंने बताया कि लोगों का प्यार मुझे बाराबंकी छोड़ने से रोक रहा था, लेकिन वालिद के गम ने पुश्तैनी काम छोड़ने के लिए मजबूर किया.
उन्होंने बताया कि दिल्ली आया तो मैंने देखा कि लोग काफी बीमार हैं. अस्पतालों में काफी लंबी लंबी लाइन लगी है. उसके बाद मैंने अपने साथियों और डॉक्टरों से मशवरा किया तो हम इस नतीजे पर पहुंचे कि लोगों को शुद्ध पानी पीने को मिले तो शायद अस्पतालों की लाइनें थोड़ी छोटी हो जाए. इसके बाद मैंने टेक्निकल टीम और दूसरे लोगों से मशवरा किया और हमने शुद्ध पानी के लिए यूरोफोब्स नाम से एक कंपनी शुरू की, जिसका मकसद सस्ते दामों में बेहतरीन क्वालिटी का पानी मुहय्या कराना है.
वहीद अली ने बताया कि मैं अपने जीवन में सिर्फ एक या दो बार डॉक्टर के यहां गया हूं, क्योंकि मैंने हमेशा इस बात पर जोर दिया कि हमें शुद्ध और साफ सुथरा पानी पीना चाहिए. उन्होंने बताया कि अगर आदमी अपने जीवन में यह तय कर ले कि वह समाज सेवा अपना धर्म और अपना कर्तव्य समझकर करेगा, तो उसके लिए जिंदगी कुछ और ही हो जाती है. जिंदगी में मंगल और खुशियां होती हैं. उन्होंने बताया कि अगर हम मस्जिद या मंदिर जाते हैं तो यह अपने लिए जाते हैं, लेकिन अगर हम किसी को सहारा देते हैं तो यह समाज के लिए करते हैं.
उन्होंने बताया कि हमें यह तय करना होगा कि हम समाज के लिए फायदेमंद है या नुकसानदेह. उन्होंने कहा कि जिस दिन हमने खुद को समाज के लिए एक फायदे के तौर पर साबित कर दिया उस दिन समाज हमें गले लगाने के लिए तैयार होगा. वाहिद अली ने बताया कि मेरी हमेशा कोशिश रहती है कि मुझ से एक चीटी को भी तकलीफ ना हो, क्योंकि यह चीज़ मुझे अपने पिता से विरासत में मिली है.
वाहिद अली का कहना है कि यूरोफोब्स से हम हर घर को सेहतमंद बनाना चाहते हैं. हमारा उद्देश्य पैसा कमाना नहीं समाज सेवा करना है, लेकिन अगर इसमें कुछ पैसे मिल जाए तो इससे भी हमें गुरेज़ नहीं हैं, क्योंकि जिंदगी गुजारने के लिए पैसों की भी जरूरत पड़ती है, लेकिन पैसे अगर लोगों का गला काट कर ना लिए जाएँ बल्कि उनकी सेवा कर के लिए जाये तो लोग ख़ुशी कुशी पैसे देने के लिए तैयार हैं.