ड्राफ्ट के अनुसार बोर्ड ने अदला में कहा था कि इस सिलसिले में लेजिस्लेचर यानी पार्लियामेंट को कोई कानून बनाना चाहिए. बोर्ड की ओर से कहा गया है कि इस सिलसिले में लेजिस्लेचर कोई कानून बना सकता है.
अब सवाल यह है कि एक तरफ अगर मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड इस पूरे मामले में लेजिस्लेचर से कानून बनाने की अपील कर रहा और दूसरी ओर वह मुस्लिमों में सरकार को बदनाम करने की कोशिश कर रहा है और लॉ को लेकर उस की ओर से विरोध किया जा रहा है, आखिर क्यों? कहीं इस पूरे मामले में बोर्ड मुस्लिमों को गुमराह करने की कोशिश तो नहीं कर रहा है?
ड्राफ्ट के अनुसार जब बोर्ड ने ही कहा है कि इस सिलसिले में पार्लियामेंट को कोई कानून बनाना चहिये तो फिर बोर्ड को कानून पर एतेराज़ क्यों?
इस सवाल का जवाब देते हुए बोर्ड की प्रवक्ता मौलाना ऐ आर सज्जाद नोमानी ने वतन समाचार से बातचीत में बताया कि बोर्ड ने अदालत में यह नहीं कहा था कि इस सिलसिले में पार्लियामेंट कोई कानून बनाए. उनका कहना था कि अदालत में हमने यह बात रखी थी कि “तीन तलाक़ एक मज़हबी मामला है और इस मामले में अदालत को कोई हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, कानून बनाने का अधिकार सिर्फ पार्लियामेंट को है, जिसे अदालत ने स्वीकार किया था.
नोमानी का कहना था कि हमने कोई क़ानून बनाने की अपील पार्लियामेंट से नहीं की थी. यह बिल्कुल गलत बात है कि हम ने सरकार से कोई कानून बनाने के लिए कहा था. उन्होंने कहा कि अगर हम यह न कहते कि कानून बनाने का अधिकार पार्लियामेंट को है अदालत को नहीं तो फिर क्या कहते. उन्हों ने कहा कि बोर्ड को कानून पर कोई इतेराज़ नहीं है बल्कि उस के मुसव्वदे पर है. उन्हों ने बताया कि इस पूरे मामले पर गौर करने के लिए बोर्ड ने 24 दिसम्बर को लखनऊ में हंगामी बैठक बुलाई है.
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