लेकिन इस अकेले इन्सान ने अपने मुठ्ठी भर साथियों के साथ अपनों और दुश्मनों की शाज़िशों के बावजूद इस सोई हुई इस कौम को जगाने की जान तोड़ कोशिश की.वह अपनी कोशिशों में कोई खास ज़ाहिरी कामयाबी हासिल तो हासिल नहीं कर सके और अपनी ही कौम के दिए हुए तरह तरह के खेताबात लिए जल्द ही इस दुनिया से चले गए. लेकिन इस अकेले बीमार और कमज़ोर इंसान ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर इस नीम मुर्दा काफिले को जबरदस्ती गढ्ढे से दूर धकेल कर बर्बाद होने से बड़ी हद तक बचा लिया और मुसलमानों के इस गढ्ढे में गिरकर उनके अफ़साने माजी बन जाने के इमकान का तो तकरीबन खात्मा ही कर दिया. 1964-1974 के दौरान उनकी 10 साला कोशिशों ने ही मुसलमानों को बर्बाद होने से बचा लिया. इसमें किसी तरह की कोई बहस की गुंजाइश ही नहीं है.
डॉक्टर फरीदी, ने ही डॉ आंबेडकर के साथियों को 12 अक्टूबर 1968 को लखनऊ के कैसरबाग बारहदरी में जमा किया और पेरियार रामास्वामी नायकर की मदद से उन्होंने ही दलितों पिछड़ी जातियों और अल्पसंख्यकों के गठजोड़ का पहली बार नारा दिया और इस कंसेप्ट को उन्होंने ही पहली बार जमीन पर भी उतारा.उन्होंने ही इस काम के लिए एक अच्छी टीम तय्यार की. किसी ज़ाहिरी कामियाबी के बिना ही वह अपने मकसद में सबसे ज्यादा कामयाब सियासी लीडर कहे जा सकते हैं. स्वर्गीय बुनदेश्वरी प्रसाद मंडल डॉ अफरीदी की ही खोज थे. उन्होंने ही इलाहाबाद के मंसूर पारक की इतिहासिक कॉन्फ्रेंस की अध्यक्षता की थी. बुंदेशवरी प्रसाद मंडल के हाथों ही मनुवाद का तलिस्म टूटना मुकद्दर हो चुका था.
सबसे खास बात यह है कि 19 मई 1974 को उनके स्वर्गवास होने के बाद उन्हें सबसे ज्यादा गालियां बकने वाले लोगों ने ही उनका सबसे ज्यादा मातम किया, ताकि मुसलमानों को यह एहसास कराया जासके कि एक आदमी था वह भी चला गया अब इंदिरा गांधी जिंदाबाद लगाने के सिवा तुम्हारे पास कोई चारा नहीं है.
वह जब मुसलमानों से नाराज होते तो मुझको बुलाते थे. मैं जोर दे कर कहता कि दलितों के साथ मुसलमानों को बराबरी की बुनियाद पर जोड़ना वक्त की जरूरत है. तो वह कहते थे कि आप मुझसे उन लोगों को जोड़ने की बात करते हैं जिन्हें अपनी ही खबर नहीं. जिन्हें यह पता ही नहीं वह क्या हैं. उनकी हैसियत और ताकत क्या है.वह गुस्से में कहते जो कौम अपने और हमारे मोहसिन डॉक्टर फरीदी को भूल गई वह मेरे लिए जले कोयले से भी ज्यादा बे-मतलब है. इस को साथ लेकर कोई जंग जीती ही नहीं जा सकती. इस पर मेहनत करना वक्त बर्बाद करने की तरह". यह लेख पूर्व लोक सभा सांसद श्री इल्यास आज़मी की किताब मुसलमानों की सियासत ज़ख्म और इलाज से लिया गया है. इस से वतन समाचार की सहमती जरूरी नहीं है.
ताज़ातरीन ख़बरें पढ़ने के लिए आप वतन समाचार की वेबसाइट पर जा सक हैं :
https://www.watansamachar.com/
उर्दू ख़बरों के लिए वतन समाचार उर्दू पर लॉगिन करें :
http://urdu.watansamachar.com/
हमारे यूट्यूब चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें :
https://www.youtube.com/c/WatanSamachar
ज़माने के साथ चलिए, अब पाइए लेटेस्ट ख़बरें और वीडियो अपने फ़ोन पर :
आप हमसे सोशल मीडिया पर भी जुड़ सकते हैं- ट्विटर :
https://twitter.com/WatanSamachar?s=20
फ़ेसबुक :
यदि आपको यह रिपोर्ट पसंद आई हो तो आप इसे आगे शेयर करें। हमारी पत्रकारिता को आपके सहयोग की जरूरत है, ताकि हम बिना रुके बिना थके, बिना झुके संवैधानिक मूल्यों को आप तक पहुंचाते रहें।
Support Watan Samachar
100 300 500 2100 Donate now
Enter your email address to subscribe and receive notifications of latest News by email.