नई दिल्ली, वतन समाचार डेस्क: मुस्लिम महिला (विवाह पर अधिकारों का संरक्षण) विधयक 2017 पार्लियामेंट में पेश किए जाने के बाद सरकार की तरफ से इस को जल्दबाज़ी में पास कराने की हो रही कोशिशों पर तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए मारूफ इस्लामिक स्कॉलर और मौलाना आजाद जोधपुर यूनिवर्सिटी के प्रेसिडेंट प्रोफेसर अख्तरुल वासे ने कहा है, सरकार को गुजरात की बेवाओं की फ़िक्र भी करनी चाहिए जिन से 2002 में उन का सुहाग छिन गया, उन को इस मसले पर अपना मत देश के सामने रखना चाहिए. उन्हों ने कहा कि सरकार जिस तरह से आनन फानन में इस बिल को पेश और पास करना चाहती है वह समझ से बाहर है. उन्होंने कहा कि जो पार्टी 33 फीसद महिलाओं के लिए आरक्षण का वादा करके सत्ता में आई थी वह अब तक इस बिल को संसद में पेश और पास नहीं कर सकी, लेकिन जिस जल्दबाजी में मुस्लिम महिलाओं के हितों की रक्षा की दुहाई देते हुए इस विधयक को पास कराना चाहती है, वह समझ से बाहर है. प्रोफेसर वासे ने कहा कि देश में लिंचिंग और इस तरह की बढ़ती घटनाओं के बीच जिस तरह से सरकार मुस्लिम महिलाओं के हितों की दहाई देते हुए संसद में कह रही है कि देश में अगर 18 करोड़ मुसलमान मर्द हैं तो 9 करोड़ मुस्लिम औरतें भी हैं, इसलिए उनके हितों की रक्षा जरूरी है, उन्हों ने कहा कि अगर सरकार की कथनी और करनी में फर्क नहीं है तो सरकार यह बताये कि लिंचिंग में जो लोग मारे जाते हैं, उस वक़्त जो कोई औरत बेवा होती है और किसी मां का कलेजा छलनी होता है, उस वक़्त सरकार को तकलीफ क्यों नहीं होती. उन्होंने कहा कि इन बातों को देखते हुए सरकार की यह दलील सही नहीं मालूम होती है. उन्होंने कहा कि सरकार को इस विधयक को तब तक पास नहीं करना चाहिए जब तक शरियत के जानकार और दीन के माहिरीन इस पर अपनी मोहर न लगा दें. उन्हों ने सरकार से अपील की कि बिल जल्दबाजी में पास करने की कोशिश न की जाय, बल्कि इससे पार्लियामेंट की सलेक्ट कमेटी/ स्टैंडिंग समिति को भेजा जाए, ताकि इस बिल को और बेहतर किया जा सके. उन्होंने कहा कि जल्दबाजी में इस तरह से पेश और पास करने की रिवायत शुरू करना ठीक नहीं है.
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